नीला घोड़ा रा असवार, म्हारा मेवाड़ी सरदार चाली मेवाड़ी तलवार!
नीला घोड़ा रा असवार, म्हारा मेवाड़ी सरदार चाली मेवाड़ी तलवार!
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नीला घोड़ा रा असवार, म्हारा मेवाड़ी सरदार चाली मेवाड़ी तलवार, राणा सुणता ही जाज्योजी। यह गीत आपने सुना होगा। इस गीत के बोल जितने सुंदर हैं उतना ही अच्छा यह गीत गाने और सुनने में लगता है। अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर देने वाले प्रजापालक कुछ शासक हमारे देश में हुए हैं। इन लोगों में महाराणा प्रताप का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। महाराणा प्रताप को लेकर यह बात कही जाती है कि इस शासक ने घास की रोटियां खाकर अपने परिवार के साथ कष्टकारी जीवन व्यतीत किया था लेकिन इसके बाद भी उन्होंने पराधीनता स्वीकार नहीं की थी।

यूं तो महाराणा प्रताप की जयंती को लेकर अलग अलग मान्यता है लेकिन हिन्दू पंचांग विक्रम सम्वत की माने तो उनकी जयंती हर साल ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। जबकि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मेवाड़ के हिंदू शासक महाराणा प्रताप की जयंती 9 मई को मनाई जाती है। 18 जून 1576 में मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप और मुगल शासक अकबर के मध्य जमकर लड़ाई हुई थी।

इस युद्ध को ऐतिहासिक युद्धों में माना जाता है। हल्दी घाटी का मैदान आज भी बेहद लोकप्रिय है और महाराणा प्रताप के शौर्य की गाथा आज भी यहां पर जीवंत प्रतीत होती है। महाराणा प्रताप और उनके घोड़े चेतक के प्रेम की भी मिसालें दी जाती हैं। वे जब भी युद्ध लड़ते चेतक साथ में रहता। चेतक पर सवारी कर ही वे युद्ध लड़ा करते थे। चेतक के मुंह के आगे हाथी की सूंड लगा दी जाती थी। वह बेहद फुर्तीला, साहसी और कुशल था।

महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठाकर चेतक करीब 26 फीट के नाले को भी लांघ गया था। महाराणा प्रताप के साथ कुशल और ईमानदार राजपूत सरदार थे। मगर जब महाराणा प्रताप मेवाड़ से बाहर संघर्ष का जीवन जी रहे थे तब उन्हें फिर से अपनी सेना संगठित करने में भामा शाह ने मदद की थी। भामा शाह अकबर के विश्वासपात्रों में से एक थे। भामा शाह ने उन्हें विपत्ती में धन प्रदान किया था। दरअसल महाराणा प्रताप का जन्म महाराणा उदय सिंह और माता रानी जीवंत कंवर के घर हुआ था।

महाराणा प्रताप के कार्यकाल में अकबर का शासन बढ़ रहा था। कई राजा और राजपूत सरदारों ने अकबर का आधिपत्य मान लिया था लेकिन महाराणा प्रताप ने उसका आधिपत्य स्वीकार नहीं किया था। उनहोंने प्रण लिया था कि जब तक मेवाड़ा आज़ाद नहीं होगा वे महल नहीं छोड़ेंगे जंगलों में निवास करेंगे। महाराणा उदय सिंह की 22 रानियां 56 लड़के और 22 लड़कियां थीं। इतना ही नहीं प्रताप को गद्दी प्राप्त करने के लिए अपने भाई जगमल से संघर्ष करना पड़ गया था। महाराणा प्रताप बहुत ही वीर, साहसी, दूरदर्शी और एक कुशल शासक थे।

उन्होंने मुगलों के खिलाफ लड़ते हुए अंततः वीरगति प्राप्त की। 18 जून 1576 में मेवाड़ के महाराणा प्रताप और मुगल शासक अकबर के बीच हल्दी घाटी का युद्ध हुआ। इस युद्ध में महाराणा प्रताप के सैनिक अकबर की बड़ी सेना पर भारी पड़ गए हालांकि इस युद्ध में न तो अकबर जीता और न महाराणा प्रताप हारे। उनकी कुशलता देखकर अकबर आश्चर्य चकित रह गया। महाराणा प्रताप को उनके भाले और शिरस्त्राण के लिए भी जाना जाता है। जहां उनका शीरस्त्राण और कवच बेहद भारी था वहीं वे कुशलता के साथ भाला चलाकर अपना रण कौशल दिखाया करते थे।

 

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