भगवान महावीर और अहिंसा
भगवान महावीर और अहिंसा
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अपने बल पर सब कुछ पाले वो होता है वीर,
सब कुछ होते, सब कुछ त्यागे वो हैं श्री महावीर,

कोई ऐसा व्यक्ति, जो बहुत दुखी हो, दरिद्र हो, कड़ी मेहनत के पश्चात् भी मंज़िल पाने में असमर्थ है या असफल है, यदि वह निराशा एवं अभावों से आहत होकर वैराग्य ग्रहण करता है तो, इसमें ना तो कुछ उल्लेखनीय है ना ही अनुकरणीय. बर्धमान नाम का राजकुमार, वैभव जिसके चँवर ढुलाते हों, सुविधाएं जिसके चरण पखारती हों, ऐश्वर्य जिसकी आरती उतारती हो, वह यदि सब कुछ त्याग कर वैराग्य ग्रहण कर वनबिहारी हो जाता है तो, निःसंदेह यह घटना आलौकिक, असाधारण, अविस्मरणीय एवं अनुकरणीय भी हो जाती है. वो बर्धमान कोई और नहीं भगवान् महावीर ही थे.

अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को पूर्णतया अपने जीवन में उतार कर महावीर 'जिन' कहलाये. 'जिन' से ही जैन बना है.

जो अपने को जीत लेता है वही जैन है. इस प्रकार जो कामजयी है, तृष्णाजयी है, इन्द्रियजयी है एवं भेदजयी है वही जैन है. भगवान महावीर ने इन सभी को जीत कर जितेंद्र अर्थात जिनेन्द्र कहलाए.

भगवान महावीर को किसी काल, देश अथवा सम्प्रदाय की सीमा में नहीं बाँधा जा सकता. यह प्राणी मात्र का धर्म है. भगवान महावीर ने कहा है कि "कोई भी व्यक्ति जाती अथवा वर्ण से ऊंच-नीच नहीं होता, वल्कि गुणों एवं कर्मो के कारण उसकी महत्ता एवं लघुता का अंकन होता है."

समाज में स्त्री की समानता के वह प्रबल पक्षधर थे. स्त्री को करुणा व वात्सल्य की प्रतिमूर्ति बताते हुए उसे हीन और उपेक्षित मानना हिंसा है. उन्होंने स्त्रियों एवं शूद्रों को अपने धर्म संघों में सामान अवसर प्रदान करके विश्व के सम्मुख आदर्श प्रस्तुत किया.

जैनियों के 24वे तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ल त्रियोदशी को वैशाली गणतंत्र के लिच्छिवी वंश के महाराज श्री सिद्धार्थ और माता त्रिशला देवी के यहाँ कुण्डलपुर में हुआ. यह वह समय था जब भारत में अंधविश्वासों के कारण पशुवली और हिंसा का प्रचलन चरम पर था. मिथ्याभिमान ने मानवीय मूल्यों को धूल-धूसरित कर दिया था.

भगवान महावीर ने पशु वध या वलिप्रथा को ही बंद नहीं कराया बल्कि उनके अनुसार किसी को मारना, छेदना, भेदना, या शारीरिक कष्ट या जान से मार देने को ही हिंसा नहीं माना वरन मन, वचन अथवा कर्म से भी किसी को आहत करना उनकी दृष्टि में हिंसा ही है.

15 अक्टूबर सन 527 ई. पूर्व दीपावली के दिन इस युग के अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में अपनी भौतिक देह पावापुरी में त्याग कर निर्वाण प्राप्त किया. भगवान महावीर के जन्मोत्सव की ख़ुशी मानाने के लिए सभी जैन बंधु प्रतिवर्ष महावीर जयंती मानते हैं.

आप सभी को महावीर जयन्ती की बहुत बहुत शुभकामनाएं....

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