झूठ पकड़ने वाली मशीन, जिसे पॉलीग्राफ टेस्ट भी कहा जाता है, एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि कोई व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ। यह मशीन व्यक्ति के शारीरिक परिवर्तनों को मापती है, जैसे कि रक्तचाप, नाड़ी की दर और श्वास, यह मानते हुए कि जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है तो उसके शरीर में ये परिवर्तन होते हैं।
लेकिन क्या यह मशीन वास्तव में सच का खुलासा कर सकती है?
इस प्रश्न का उत्तर जटिल है। पॉलीग्राफ टेस्ट के समर्थकों का कहना है कि यह एक विश्वसनीय उपकरण है जो अपराधियों को पकड़ने और सच्चाई को उजागर करने में मदद कर सकता है। वे दावा करते हैं कि यह मशीन झूठ बोलने वाले व्यक्ति के शारीरिक परिवर्तनों को सटीक रूप से माप सकती है।
हालांकि, पॉलीग्राफ टेस्ट के आलोचकों का कहना है कि यह मशीन अविश्वसनीय है और गलत परिणाम दे सकती है। वे कहते हैं कि कई कारक व्यक्ति के शारीरिक परिवर्तनों को प्रभावित कर सकते हैं, जैसे कि चिंता, तनाव और स्वास्थ्य की स्थिति। इसके अलावा, झूठ बोलने वाले लोग अपनी भावनाओं को छिपाने में कुशल हो सकते हैं, जिससे मशीन को धोखा दिया जा सकता है।
पॉलीग्राफ टेस्ट कैसे काम करता है?
पॉलीग्राफ टेस्ट में, व्यक्ति को कई तरह के सवाल पूछे जाते हैं, जिनमें कुछ नियंत्रण प्रश्न भी शामिल होते हैं जिनके उत्तर निश्चित रूप से ज्ञात होते हैं। व्यक्ति के शारीरिक परिवर्तनों को मशीन द्वारा रिकॉर्ड किया जाता है और नियंत्रण प्रश्नों के उत्तरों से तुलना की जाती है। यदि व्यक्ति के शारीरिक परिवर्तन नियंत्रण प्रश्नों के उत्तरों से भिन्न होते हैं, तो यह माना जाता है कि वह झूठ बोल रहा है।
पॉलीग्राफ टेस्ट की सीमाएं
पॉलीग्राफ टेस्ट की कई सीमाएं हैं, जिनमें शामिल हैं:
पॉलीग्राफ टेस्ट एक विवादास्पद उपकरण है जिसकी विश्वसनीयता पर बहस जारी है। यह मशीन कुछ मामलों में सहायक हो सकती है, लेकिन इसका उपयोग सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि पॉलीग्राफ टेस्ट 100% सटीक नहीं है और गलत परिणाम दे सकती है।
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