दाऊद को पकड़ना है तो अपनाना होगी ओसामा वाली नीति
दाऊद को पकड़ना है तो अपनाना होगी ओसामा वाली नीति
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देश और उसकी सुरक्षा एजेंसियों के लिए अंडर वर्ल्ड माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम एक पहेली बना हुआ है। खुफिया तंत्र उसे भारत प्रत्यर्पण कराने में असफल रहा है। आतंक का सरगना और जरायम दुनिया का बेताज बादशाह पाकिस्तान या दुबई की धरती से आतंक का नेटवर्क चला रहा है। दुबई और दुनिया के दूसरे मुल्कों में जमीनों के धंधे से अकूत दौलत कमा रहा है। पिछले महीने एक न्यूज पोर्टल से उसकी बातचीत का टेप भी जारी हुआ था। देश के टीवी चैनलों पर यह खबर खूब दिखाई गई थी।

हमारी सुरक्षा एजेंसी ने भी इस टेप के जरिए डान के लोकेशन पर चर्चा की थी, लेकिन उसका कोई फायदा हमें नहीं हुआ। ओसामा बिन लोदन से भी तगड़ी सुरक्षा दाऊद की है। हमारी सुरक्षा एजेंसियों की पल-पल की गतिविधि पर उसकी नजर रहती है। इसी वजह से वह अपने सुरक्षित ठिकाने बदलता रहता है। भारत से इतर दुबई में उसका बड़ा साम्राज्य है। उसके पास दौलत की कोई कमी नहीं है। उसके एक इशारे पर हजारों आतंकी मर मिटने को तैयार रहते हैं। वर्ष 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाके का वह मुख्य आरोपी हैं, लेकन इस हमले को हुए बीस से बाइस साल का वक्त गुजर गया लेकिन अभी तक हम दाऊद को भारत नहीं ला पाए।

यह हमारी सरकार और उसकी कानून व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती है। हमारी सरकार हर बार दाऊद के पाकिस्तान में होने का राग अलापती हैं। लेकिन पाकिस्तान भारत के इन आरोपों को कभी तवज्जो नहीं देता है। एक भी बार उसने यह नहीं कहा कि माफिया डॉन पाकिस्तान में है। दाऊद पर हम दबाब बानने में नाकाम रहे हैं। 'दाऊद पाकिस्तान में है', सिर्फ इस तरह का बयान देकर हम अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकते। सरकारें अपना राजधर्म निभाती नहीं दिखती हैं। वह पाकिस्तान में हो या दुबई में, उसे हर हाल में भारत लाना होगा।

आतंक का सरगना कब भारत आएगा इसका जबाब हमारे पास नहीं है। विपक्ष सरकार पर दबाब बनाता है तो सरकार बयानों के जरिए अपने दायित्वों की इतिश्री कर लेती है। प्रतिपक्ष में बैठी कांग्रेस यह पूछने का अधिकार नहीं रखती है, क्योंकि यूपीए सरकार में भी दाऊद को भारत लाने का भरोसा दिलाया गया था, लेकिन यह एक सपना ही रह गया। इस तरह के बयानों से उसे स्वदेश नहीं लाया जा सकता। पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाब बनाने की जरूरत है। बगैर इंटर नेशनल लॉबिंग के हम उसे प्रत्यर्पित नहीं करा सकते। डॉन पाकिस्तान मंे है तो उसे भारत क्यों नहीं लाया जा रहा है?

वह भी तब, जब संयुक्तराष्ट्र उसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित कर चुका है। इंटरपोल की तरफ से रेड कॉर्नर नोटिस जारी है। इसके बाद भी वह पाकिस्तान में खुले घूम रहा है। इससे बड़ी हमारी असफलता और क्या हो सकती है। मनमोहन के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में भी दाऊद को भारत लाने की कोशिश की गई थी। सरकार और तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम बार-बार संसद और देश की जनता को यह भरोसा दिलाते रहे कि दाऊद को जल्द ही स्वदेश लाया जाएगा, लेकिन सरकार का लोकसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया और दाऊद जहां था, वहीं रह गया। इस मसले पर मोदी सरकार भी यूपीए की रीति-नीति पर ही चल रही है।

सरकार ने पहले दाऊद पर अलग नीति अपनायी, लेकिन जब प्रतिपक्ष का दबाब बना तो केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने यूपीए सरकार का ही रटा रटाया जबाब दिया, उसमें कुछ नया नहीं दिखा। गृहमंत्री का यह बयान जिम्मेदारियों से बचने का एक बहाना था। उन्होंने भी यही बात दुहराई कि माफिया डॉन दाऊद पाकिस्तान में है, लेकिन पाकिस्तान सरकार यह मामने को तैयार नहीं है कि दाऊद उसके हित संरक्षण में पल रहा है। दरअसल, आतंक पर पाकिस्तान हमेशा दोहरी नीति अपनाता रहा है। भारत को नेस्तनाबूद करने का मास्टर प्लान तैयार करने वाले आतंकी सरगना बेखौफ पाक में चैन की नींद सो रहे हैं। यह बात पूरी दुनिया जानती है। आतंक को लेकर दुनिया के देशों की नीति अलग है।

इस मसले पर लोग एक मंच पर नहीं आना चाहते। अमेरिका आतंकवाद पर दोहरी नीति अपनाता है। एक ओर चीन के बढ़ते प्रभुत्व के कारण वह भारत से अपनी हमदर्दी और करीबी जताता है। दूसरी ओर, भारत के लाख विरोध के बाद भी आतंक के सफाए के लिए करोड़ों रुपये के अमेरिकी डालकर की मदद पाकिस्तान को उपलब्ध कराई जाती है, जबकि भारत इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर चुका है। भारत के लाख विरोध के बाद भी अमेरिका अपनी अंतर्राष्ट्रीय नीति के तहत पाकिस्तान को सहायता उपलब्ध कराया।

26/11 हमले के आरोपी ओसामा बिन लादेन को अमेरिका पाकिस्तान के एटमाबाद में घूस बम बरसा लादेन का सफाया कर सकता है। अफगानिस्तान में ड्रोन हमला कर सकता है। लेकिन दाऊद को भारत को प्रत्यर्पित करने में पाकिस्तान को नंगा क्यों नहीं कर सकता। अपने आप में यह सबसे बड़ा सवाल है। अमेरिका की घरेलू और विदेशी नीति में यह बड़ा अंतर है। वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद अमेरिका में एक भी आतंकी हमला नहीं हुआ, लेकिन भारत में इसकी गिनती नहीं की जा सकती।

आतंक और उसके सफाए के लिए हमें अमेरीकी नीति अपनानी होगी। पाकिस्तान हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा बना है। दिसंबर 2014 में पाकिस्तान के आर्मी स्कूल में आतंका खौफनाक चेहरा सामने आया था। उसय पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का बयान आया था कि अच्छा और बुरा, दो तालिबान नहीं हो सकता। तालिबान एक ही हो सकता है। भारत के लाख विरोध के बाद भी मुंबई बम धमाकों के आरोपी जकीउर रहमान को जमानत मिल गई। भारत ने इस पर कई बार कड़ा विरोध जताया, लेकिन पाकिस्तान भारत को सांत्वना देता रहा। पाक अदालतें भी आतंक पर दोहरी नीति अपनाती हैं। आर्मी स्कूल के धमाके बाद पाकिस्तान इतना हिल गया कि उसे फांसी की सजा पर लगाई रोक वापस लेनी पड़ी।

एमनेस्टी इंटर नेशल और संयुक्त राष्ट्र संघ के भारी विरोध के बाद भी पाकिस्तान में फांसी देने का सिलसिला नहीं थम रहा है, क्योंकि आर्मी स्कूल पाकिस्तान का दर्द था। लेकिन 1993 में मुंबई में हुआ सिलसिलेवार बम धमाका उसकी पीड़ा नहीं। जब तक आतंक की पीड़ा को हम समान नहीं समझेंगे, तब तक इस समस्या को वैश्विक मंच की आवाज हम नहीं बना सकते। यह बात दीगर है कि इससे दुनियाभर के मुल्क पीड़ित हैं। पाकिस्तान आतंक पर दोहरी नीति अपना रहा है। मुबंई में आतंकी हमले का सरगना हाफिज सईद पाकिस्तान में खुले आम रैलियां करता है। वह कश्मीर में आग भड़काता है।

पाकिस्तान की जमीन से भारत विरोधी नारे लगाता है। सरकार रैलियों के लिए रेलगाड़ियों की सुविधा उपलब्ध करती है। लेकिन सईद को नहीं सौंप रहा है। कश्मीर में अलगाववादी ताकतें भारत विरोधी नारे लगाती हैं। भारत का राष्ट्रध्वज आग के हवाले किया जाता है। सरकार के विरोध के बाद अलगाववादी सरकार से बात करने के पहले पाकिस्तानी उच्चायोग से बात करते हैं। यह सब आखिर क्या है? एक लोकतांत्रिक सरकार में अलगाववादी मसर्रत आलम को रिहा किया जाता है। उस स्थिति में हम अपना गठबंधन धर्म निभाने को बेताब हैं, आखिर क्यों? राजनीति क्या देश और उसकी सुरक्षा से बड़ी है?

अगर नहीं तो ऐसी सरकारें चलाने का क्या मतलब है जो आतंकी आकाओं और उसके सरगनाओं की नीतियों को खुलेआम संरक्षण देती हों। इस स्थिति में जब तक हम आतंकवाद पर घरेलू नीति साफ नहीं करते, तब तक वैश्विक मंच पर इस पर कूटनीतिक विजय पाना हमारे लिए संभव नहीं है। जब हाफिज सईद, जकीउर रहमान को पाकिस्तान में खुला संरक्षण है, तो इससे यह साफ जाहिर है कि माफिया सरगना दाऊद इब्राहिम भी पाकिस्तान की सुरक्ष में चैन की नींद सो रहा है। आतंक के मसले पर पाकिस्तान कभी भी भारत का सहयोग नहीं करेगा। अगर यह उम्मीद पाकिस्तान से लगाए बैठे हैं तो यह हमारी नासमझी है।

पाकिस्तान अपनी दोगली नीति से बाज आने वाला नहीं है, क्योंकि वहां सरकार की नहीं सेना की नीति लागू होती है। सेना भारत को अजातशत्रु मानती है। जब तक वैश्विक दुनिया के देश आतंक पर दोहरीनीति अपनाते रहेंगे, तब तक हम आतंकवाद के खिलाफ एकजुट नहीं हो सकते। दुनियाभर में आतंकी अपना-अलग साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं। आतंकवाद हमारी राष्टीय सुरक्षा के लिए चुनौती है। अगर हमारी सरकार आश्वस्त है कि दाऊद पाकिस्तान में है, तब हमें पाकिस्तान पर इंटरपोल और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के जरिए दबाब बनाना होगा। अगर हम यह सब कर पाते हैं तो यह हमारी बड़ी कूटनीतिक जीत होगी। वरना हमें संसद में दाऊद पर व्यर्थ प्रलाप बंद करना होगा।

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