यह है बाजार में मिलने वाले रंगों की सच्चाई
यह है बाजार में मिलने वाले रंगों की सच्चाई
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होली का त्यौहार हो और रंगों के बात ना हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। पहले लोग बाजार से रंग नहीं खरीदते थे बल्कि बसंत के दौरान पेड़ों में उगे फूलों से रंगों को तैयार करते थे। पारिजात और टेसू से बने रंग बहुत ही शानदार होते थे. बहुत से अलग फूलों से बहुत तरह के रंग तैयार किये जाते थे. इनमें से अधिकांश पेड़ों में औषधीय गुण होते थे और इनसे जो होली के रंग तैयार होते हैं जो वास्तव में त्वचा के लिए फायदेमंद होते हैं। आजकल लोगों के पास वक्त की बहुत कमी हो गयी है और सब कुछ उन्हें रेडीमेड ही चाहिए होता है तो ऐसे में कौन महीना भर पहले से होली के लिए रंग तैयार करने में अपना वक्त गुजारना चाहता है. बस इनकी इसी कमजोरी को बहुत से लोगों ने अपना धंधा बना दिया और प्राकृतिक रंगों की जगह रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से निर्मित औद्योगिक रंगों ने ले ली.

आजकल मार्केट में होली खेलने के लिए ट्यूब, गुलाल और पानी में मिलाये जाने वाले सूखे रंग आसानी से मिल जाते हैं. रंग वाले पेस्ट में लीड ऑक्साइड,कॉपर सल्फेट और एल्यूमिनियम ब्रोमाइड जैसे जहरीले केमिकल मिले होते हैं जो हमारे शरीर पर बहुत खतरनाक प्रभाव डाल सकते हैं।

आजकल बाजार में मिलने वाले गुलाल में दो घटक होते हैं. पहला तो इसका कलरेंट जो बहुत जहरीला होता है और दूसरा इसका बेस जो कि एस्बेस्टोस या सिलिका हो सकता है. ये दोनों ही हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी नुक्सानदायक होते हैं. ऐसे रंगों में मौजूद भारी धातुओं से अस्थमा, त्वचा रोग और आंखों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

गीले रंगों में कलर को गाढ़ा करने के लिए एक सिंथेटिक डाई गेन्टियन वायलेट का उपयोग किया जाता है जो स्किन का रंग बिगाड़ देती है और इससे चहरे में जलन और रगड़ भी आ जाती है.

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