कचरे से बिजली उत्पादन को महत्त्व दें सरकार
कचरे से बिजली उत्पादन को महत्त्व दें सरकार
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देश के महानगरों में ठोस कचरा प्रबंधन की प्रणाली की गंभीर कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए पर्यावरणविदों ने सरकार से कचरे से बिजली पैदा करने को उसी तरह तवज्जो देने की मांग की जिस तरह सौर और पवन ऊर्जा को अहमियत दी जा रही है। जाने माने वैज्ञानिक रवि चोपड़ा ने कहा कि नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, अभी शहरी कचरे से 1700 मेगावाट बिजली पैदा किये जाने की क्षमता है और ऐसा अनुमान है कि यह साल 2017 तक बढ़कर 5200 मेगावाट हो सकता है। ऐसे में कचरे से बिजली पैदा करने के विषय को नीतिगत स्वरूप प्रदान किये जाने की जरूरत है।

सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर ने कहा कि भारतीय नवीकरणीय उर्जा विकास एजेंसी के अनुमानों पर ध्यान दें तो अभी तक देश में कचरे से बिजली पैदा करने की क्षमता का 2 प्रतिशत ही उपयोग किया जा सका है। इसलिए इतनी बड़ी क्षमता की संभावना को देखते हुए कचरे से बिजली पैदा करने के विषय को उसी तरह तवज्जो दी जानी चाहिए जिस तरह सौर और पवन उर्जा को दिया जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी भारत में प्रतिदिन 1,88,500 टन नगरपालिका ठोस कचरा :एमएसडब्ल्यू: निकालता है और प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति के हिसाब से इसके 1.3 प्रतिशत की दर से बढऩे की उम्मीद है। वहीं हर दशक में कचरा उत्पन्न होने की दर 50 प्रतिशत बढ़ जाती है।

वैज्ञानिक हिमांशु कुलकर्णी ने कहा कि 80 प्रतिशत कचरा खुले में फेंका जाता है जिसके कारण लोक स्वास्थ्य, पर्यावरण प्रदूषण को नुकसान पहुंचने के साथ ही ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बढऩे में भी इनका काफी हिस्सा पाया गया है जो जलवायु परिर्वतन में भी योगदान कर रहे हैं।

पर्यावरण संरक्षण से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि नगरपालिकाओं के पास सीमित विकल्प होते हैं और तत्काल समन्वित कचरा प्रबंधन प्रणाली नहीं तैयार कर पा रहे हैं। इसके साथ ही प्रतिदिन शहरों में काफी संख्या में लोग आ रहे हैं। भारत में कचरा प्रबंधन के वर्तमान आधारभूत ढांचे को देखते हुए यह अतिरिक्त चेतावनी का विषय है।

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