शराब की घूंट मुंह में जाते ही दिमाग और शरीर पर बेहद अलग असर होने लगता है. मुंह में जाते ही शराब को कफ झिल्ली सोख लेती है. घूंट के साथ बाकी शराब सीधे छोटी आंत में जाती है. छोटी आंत भी इसे सोखती है, फिर यह रक्त संचार तंत्र के जरिए लीवर तक पहुंचती है.
कभी खुशी, कभी गम, कभी थकान तो कभी आराम, पीने वाले शराब पीने का मौका खोज ही लेते हैं. पीते ही इंसान का मूड बदल सा जाता है, कुछ लोग ज्यादा बात करने लगते हैं.
बहुत ज्यादा अल्कोहल मस्तिष्क पर असर डालता है. आस पास के माहौल को भांपने में शरीर गड़बड़ाने लगता है, फैसला करने की और एकाग्र होने की क्षमता कमजोर होने लगती है. शर्मीलापन कमजोर पड़ने लगता है और इंसान खुद को झंझट मुक्त सा समझने लगता है.
लेकिन ज्यादा मात्रा में शराब पीने से ये अनुभव बहुत शक्तिशाली हो जाते हैं और इंसान बेसुध होने लगता है. उसमें निराशा का भाव और गुस्सा बढ़ने लगता है.
मुंह और गले में अल्कोहल कफ झिल्ली को प्रभावित करता है, भोजन नलिका पर असर डालता है. लंबे वक्त तक ऐसा होता रहे तो शरीर हानिकारक तत्वों से खुद को नहीं बचा पाता है. इसके दूरगामी असर होते हैं. जाइत्स के मुताबिक पित्त संक्रमण का शिकार हो सकता है, हम अक्सर भूल जाते हैं कि ब्रेस्ट कैंसर और आंत के कैंसर के लिए अल्कोहल भी जिम्मेदार है.