विचारों का सिलसिला क्‍या कभी थम सकता है
विचारों का सिलसिला क्‍या कभी थम सकता है
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आप क्रिया पर ध्यान लगा रहे हैं और विचारों को दूर रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन विचार दूर नहीं जाते। यह हमारे मन का स्वभाव है, पर ऐसा लगता है कि आप अपने मन के साथ ज्यादती कर रहे हैं।

जब आप क्रिया कर रहे होते हैं तो आप इस बात की परवाह नहीं करते कि आपकी किडनी काम कर रही है या नहीं, आपका दिल धडक़ रहा है या नहीं। शरीर के भीतर होने वाली बाकी दूसरी क्रियाओं की भी आपको कोई परवाह नहीं होती। लेकिन आप यह जरुर चाहते हैं कि आपका मन काम न करे। कई लोगों की यह धारणा होती है कि अगर आप कुछ आध्यात्मिक काम कर रहे हैं तो आपके मन को काम करना बंद कर देना चाहिए। यह धारणा बिल्कुल गलत है।
आपके लिवर और किडनी में जो हो रहा है, वह आपके मन में पैदा होने वाले विचारों से कहीं ज्यादा जटिल है। अगर आपके इन अंगों की गतिविधियां आपके काम में बाधा नहीं डाल रही हैं तो आपके विचार आपको परेशान क्यों करते हैं? क्योंकि आपको लगता है कि आप खुद विचार हैं। जब आप सोचते हैं तो आप इसे ‘मेरे विचार’ के रूप में नहीं देखते। आप कहते हैं, ‘मैं ऐसा सोचता हूं।’ चूंकि आपने अपने विचारों की प्रक्रिया के रूप में अपनी गहन पहचान स्थापित कर ली है, इसलिए ये आपको परेशान कर रहे हैं। आप अपनी किडनी के रूप में खुद की पहचान स्थापित नहीं करते, जब तक कि आपको उससे जुड़ी कोई समस्या नहीं हो। अगर किडनी ठीक से काम कर रही है, तो आपको यह महसूस भी नहीं होता कि आपके भीतर किडनी भी है।

जो कुछ भी ठीक से काम नहीं कर रहा है, उसके प्रति आप हमेशा जागरूक रहते हैं। मेरा मतलब आपके मन से है, मैं उसी के बारे में कह रहा हूं। अगर यह ठीक तरह से काम करता तो आप इस पर ध्यान ही नहीं देते। ठीक वैसे ही जैसे आप अपनी किडनी या लिवर पर ध्यान नहीं देते। अगर आप अपने मन के रूप में अपनी पहचान स्थापित नहीं करते तो आप उसकी ओर ध्यान ही नहीं देते।

आप कुछ ऐसी चीजों के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर रहे हैं, जो आप हैं ही नहीं। एक बार अगर आप ऐसी किसी चीज के साथ अपनी पहचान स्थापित कर लेते हैं जो आप हैं ही नहीं, तो आप मानसिक प्रक्रिया को नहीं रोक सकते। यह अंतहीन तरीके से जारी रहेगी। यह ऐसे ही है, जैसे अगर आपने कोई गलत चीज खा ली तो पेट में गैस बन जाएगी। इसे आप नहीं रोक सकते। उसके लिए आपको गलत भोजन खाना ही बंद करना पड़ेगा।

अभी आपके लिए गलत भोजन क्या है? आप खुद को वो मान बैठे हैं, जो आप नहीं है। जब आप अपने शरीर, अपने विचारों और अपने भावों के साथ, अपने आसपास की चीजों के रूप में, अपनी पहचान स्थापित कर लेंगे तो आपके विचारों का सिलसिला कभी नहीं थमेगा। लोगों को लगता है कि मन ऐसा ही है। मन ऐसा नहीं है। अगर आपके पेट में हरदम दर्द रहे तो आप सोचेंगे कि पेट ऐसा ही होता है।

आपकी जो भी मान्यताएं हैं, आपने जो भी चीजें अपने मन में इकट्ठी कर रखी हैं, अगर आप उन सभी को छोड़ दें, तो आप पाएंगे कि जब आप बैठते हैं तब आपका मन बिल्कुल खाली होता है। अगर यह खाली है तो इसका क्या फायदा?फायदा यह है कि तब यह पूरे जगत को प्रतिबिंबित कर सकता है। नहीं तो यह बिल्कुल हास्यास्पद होगा।

बस यही दो विकल्प हैं- आप अपने मन को हास्यास्पद स्थान बनाना चाहते हैं या ब्रह्मांडीय। इसके ब्रह्मांडीय स्थान बनने के लिए आपको सभी झूठों को छोडऩा होगा। तभी सत्य अपने वास्तविक रूप में सुशोभित होगा।

अपने विचारों को लेकर या उन्हें काबू करने को लेकर चिंता मत कीजिए। आज आपके भीतर क्या है, उसके आधार पर विचार तो उमड़ेंगे ही। इसका न कोई महत्व है और न ही कोई परिणाम है। आपको बस अपनी क्रिया करनी है। विचारों पर काम मत कीजिए। चाहे आप उन्हें हटाने की कोशिश कर रहे हों या यह कोशिश करें कि ध्यान के दौरान केवल 108 पवित्र विचार आएं, आप काम तो विचारों पर ही कर रहे हैं। किडनी अपना काम करेगी, लिवर अपना काम करेगा, मन अपना काम करता रहेगा, आप क्रिया कीजिए, बस क्रिया।

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