किस्सा एक आईने का, जो में समझ न पाया
किस्सा एक आईने का, जो में समझ न पाया
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बहुत से व्यक्ति अपने इस जीवन को ही नहीं समझ पाते की यह जीवन है क्या ? हमें अपने इस जीवन में क्या करना चाहिये। क्या अच्छा है, क्या बुरा इसकी कोई समझ नहीं होती है।

आज मानव के इस समाज में बहुत से व्यक्ति कमाना ,खाना तथा धन जोड़ना तक ही सीमित है। पर जीवन का यह मूल उद्देश नहीं होता है। व्यक्ति को इन सबके बावजूत धर्म-कर्म के साथ साथ परो -उपकार भी करना चाहिये ।

इसी के चलते आप इस कहानी से ले सकते है जीवन की वास्तविकता की सीख। 

जीवन की वास्तविकता - 

किसी नगर में एक साहुकार रहता था। उसे अपने इस जीवन में धन इकट्ठा करने का बड़ा ही शौक था। उस व्यक्ति को अपनी योग्यता का भी बहुत अहंकार था। जब भी कोई गरीब व्यक्ति उसके घर भीख मांगने आता तो वो उसे भला-बुरा कहता उसके साथ गलत वचनों का प्रयोग करता।

एक दिन उस साहुकार ने किसी न किसी चीज के स्वार्थ रूप में  एक महात्मा को भोजन करवाया। फिर भोजन के बाद उसने उस महात्मा को एक आईना दिया और उस साहूकार ने कहा आपको जो भी व्यक्ति सबसे बड़ा मूर्ख दिखाई दे उसे आप यह आईना दे देना।

महात्मा जी वह आईना लेकर चले गए। काफी समय के पश्चात वही महात्मा एक बार घूमते हुए फिर से उसी शहर में आए। और उस महात्मा ने देखा की वही साहुकार अब मृत्यु शैय्या पर लेटा है। महात्मा उससे मिलने पहुंचे तो साहुकार ने महात्मा को देखते ही कहा, महाराज इस दुनिया में ऐसी कोई विद्या है। जिससे मेरे प्राण बच सकें। आप इसका कोई उपाय बताओ । 

महात्मा जी ने मना कर दिया और कहा- "आया हे सो जायेगा राजा रंक फकीर " 

इस संसार सागर में जो भी आया है उसे जाना ही है । उन्होंने कहा अब तो तुम्हारा यह धन भी तुम्हें मृत्यु से नहीं बचा सकता है। महात्मा उस साहुकार के बारे में जानते थे। तब उन्होंने अपने झोले से वही आईना निकाला और साहुकार को दिखाया। महात्मा जी ने कहा, मुझे अभी तक कोई मूर्ख नहीं मिला। लेकिन तुम धन से मृत्यु को खरीदना चाहते हो इससे बड़ी मूर्खता क्या होगी। तुमने धन को एकत्रित करने में व्यर्थ ही जिंदगी व्यतीत कर दी ।

कहने का आशय यह है की जिंदगी में भौतिक सुख-सुविधाएं कितनी भी हों, अंत समय में इन सभी वस्तुओं का कोई मूल्य नहीं रह जाता। व्यक्ति अपने जीवन में धन ,वैभव में इतना लीन हो जाता है की उसे जीवन का मर्म ही मालूम नहीं हो पाता है।प्रत्येक जीव को चाहे वह मानव हो या अन्य सभी को मृत्यु के आगे नतमस्तक होना पड़ता है। वही व्यक्ति इस जीवन में सफल हो सकता है। जिसे इन सभी वस्तुओं का मोह न हो।बस उनका सद उपयोग करे दीन- दुखी तथा अन्य व्यक्तियों की सहायता करे ।

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