'मधुशाला' वाले हरिवंश राय बच्चन का आज है जन्मदिन
'मधुशाला' वाले हरिवंश राय बच्चन का आज है जन्मदिन
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आओ सब हिल-मिलकर गाएं,
एक खुशी का गीत,
आज किसी का जन्मदिवस है,
 गूँजा उठा संगीत,
आओ सब हिल-मिलकर गाएं,
एक खुशी का गीत,

हिन्दी भाषा के एक प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन जी का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव पट्टी में हुआ था.इनको बाल्यकाल में 'बच्चन' कहा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ होता है 'बच्चा या संतान'बाद में हरिवंश राय बच्चन इसी नाम से मशहूर हुए.हरिवंश राय ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा के बाद 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी साहित्य में एम. ए किया व 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवक्ता रहे.

1926 में हरिवंश राय जी की शादी श्यामा से हुई थी जिनका टीबी की लंबी बीमारी के बाद 1936 में निधन हो गया.पाँच साल बाद 1941 में बच्चन ने पंजाब की तेजी सूरी से विवाह किया जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थीं.हरिवंश राय बच्चन 20 वी सदी के नयी कविताओ के एक विख्यात भारतीय कवी और हिंदी के लेखक थे वे हिंदी कवी सम्मलेन के विख्यात कवी थे. उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति “मधुशाला” है. और वे भारतीय सिनेमा के विख्यात अभिनेता, अमिताभ बच्चन के पिता भी थे. 1976 में, उन्हें उनके हिंदी लेखन ने प्रेरणादायक कार्य के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.

हरिवंश राय बच्चन की मुख्य-कृतियां - मधुशाला, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, सतरंगिनी, विकल विश्व, खादी के फूल, सूत की माला, मिलन, दो चट्टानें व आरती और अंगारे इत्यादि बच्चन की मुख्य कृतियां हैं.

बच्चन जी की प्रसिद्ध कृतियों में एक मधुशाला -

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।। 

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।। 

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।। 

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ,
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।। 

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।। 

बच्चन जी की कविताओं में जीवन की वास्तविकता और सच्चाई का अनूठा वर्णन मिलता है. इनकी कविताएं और लेख आज भी लोगों के दिल को छूने वाले है.बच्चन जी आज भी लोगों दिलों में गूंजते है .बच्चन जी ने 18 जनवरी 2003 को इस संसार सागर से बिदाई ले ली. बिदा तो हो गए पर लोगों के अंदर आज भी याद बनकर बैठे हुए है.

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