अंबेडकर को
अंबेडकर को "हिंदू आइकन" बनाने में जुटा संघ
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style="color: rgb(0, 0, 0); font-family: Arial, Tahoma, Verdana; font-size: 14px; line-height: 20px; text-align: justify;">लखनऊ : बाबा साहेब डॉ. भीम राव अंबेडकर की 125वीं जयंती 14 अप्रैल को है। अंबेडकर की विरासत को लेकर सियासतदानों के बीच इस बार फिर नए सिरे से रस्साकशी होनी तय है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की रणनीति बौद्ध अंबेडकर को 'दलित आइकन' के फ्रेम से बाहर निकालकर 'हिंदू आइकन' बनाने की है। वहीं, आरएसएस का करीबी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से भी मंगलवार को कई कार्यक्रम आयोजित किए जाने हैं।
 
लिहाजा, इन सब के बीच बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती के सामने मुख्य चुनौती अपने कार्यकर्ताओं का भरोसा बचाए रखने की है। बाबा साहेब की कीर्ति को भुनाने की असली लड़ाई बसपा और भाजपा के बीच होगी। भाजपा व संघ संविधान निर्माता के गौरवशाली व्यक्तित्व और अतीत की चर्चा करेंगे, ताकि समाज में उनकी छवि दलित मसीहा की बजाय हिंदू आइकन के तौर पर प्रस्तुत हो सके। रणनीति के अनुसार, इस बार संघ अंबेडकर जयंती के मौके पर अपने मुखपत्र 'ऑर्गनाइजर' व 'पांचजन्य' का अंबेडकर पर केंद्रित विशेषांक प्रकाशित करने जा रहा है।
 
संघ के एक पदाधिकारी की मानें तो संघ को लगता है कि डॉ. अंबेडकर को सिर्फ जातीय बंधन में बांधना उनके साथ सही न्याय नहीं होगा। इसलिए उनकी छवि को और विस्तृत तौर पर पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा, "वास्तव में डॉ. अंबेडकर के बारे में सामग्री जुटाने का फैसला बहुत पहले कर लिया गया था। अब अंतर आया है, पहले संघ में इस तरह के विचार अनसुने कर दिए जाते थे।" रोचक यह है कि संघ के मौजूदा सह सरकार्यवाह डॉ़ कृष्णगोपाल ने भी अंबेडकर पर कई पुस्तकें लिखी हैं।
 
लिहाजा, अंबेडकर जयंती के मौके पर ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता भवन में आयोजित होने वाले एक सेमिनार में वह शिरकत भी करेंगे और अंबेडकर के सामाजिक समरसता को लेकर अपने विचार रखेंगे। संघ की रणनीति के मुताबिक ही उसके अनुषांगिक संगठन 'सेवा भारती' की ओर से इस मौके पर उप्र के सभी जनपदों में 14 अप्रैल को सहभोज व माल्यार्पण और सामाजिक समरसता को लेकर संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा।
 
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो सही मायने में संघ विचारधारा के स्तर पर सोशल इंजीनियरिंग की तरफ बढ़ रहा है। यह विचारधारा आने वाले समय में संघ के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी और 'घर वापसी' के कई रास्ते खुलेंगे। संघ के पदाधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि विचारधारा के स्तर पर सोशल इंजीनियरिंग के दो फायदे हैं। एक तो जातिवादी धारणा को कम करने में मदद मिलेगी। जातिवादी धारणा ही संघ की हिंदू एकता की मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।
 
इसलिए अंबेडकर जैसी शख्सियत पर जितना मंथन होगा, वह संघ के लिए उतना ही फायदेमंद साबित होगा। इधर, बसपा ने भी अंबेडकर जयंती के मौके पर बड़े कार्यक्रम की तैयारी कर रखी है। प्रदेश अध्यक्ष रामअचल राजभर, विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता व बसपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य व नसीमुद्दीन सिद्दकी ने कार्यक्रम को सफल बनाने में पूरी ताकत झोंक दी है।
 
इस कार्यक्रम में स्वयं बसपा प्रमुख मायावती भी मौजूद रहेंगी। अंबेडकर को लेकर विभिन्न दलों एवं संगठनों की ओर से आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के बारे में स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, "कांग्रेस, सपा और भाजपा के बीच जिस प्रकार से जयंती मनाने की होड़ मची है, इसके लिए उन्हें मायावती व कांशीराम को धन्यवाद देना चाहिए। मायावती ने अंबेडकर को घर-घर पहुंचाने का काम किया है।"
 
उन्होंने कहा कि जो पार्टियां अंबेडकर का नाम लेने से कतराते थे, वे अपना 'राजनीतिक उल्लू' सीधा करने के लिए ही ऐसा कर रहे हैं। इस बीच भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने भी कहा कि अंबेडकर जयंती के मौके पर सभी जिलों में सामाजिक समरसता का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। कार्यकर्ताओं को अंबेडकर जयंती के मौके पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में शामिल होने को भी कहा गया है।
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