इस मंदिर में है बिना सिर वाली देवी
इस मंदिर में है बिना सिर वाली देवी
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भारत में अनेक प्रकार के मंदिर है जहां लोग विधि विधान से पूजा करते है। भारत की पहचान विविध संस्कृतियों से होती है। क्योंकि यहां आए दिन कोई न कोई चमत्कार होते ही रहते हैं, जो हमें ऐसा सोचने पर मजबूर कर देते हैं। दरअसल झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा नाम की एक जगह है। इस जगह की पहचान पर्यटन और धार्मिक महत्व के कारण होती है। जगह में स्थित छिन्नमस्तिके मंदिर शक्तिपीठ के रूप में काफी विख्यात है. आइए हम आपको इस मंदिर के बारे में बताते हैं।

बिना सिर वाली देवी मां की पूजा होती हैं - एक मान्यता के अनुसार, असम स्थित मां कामाख्या मंदिर सबसे बड़ी शक्तिपीठ है, जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर ही है. यहां भक्त बिना सिर वाली देवी मां की पूजा करते हैं और मानते हैं कि मां उन भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती है।

6000 साल पुराना मंदिर - पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है. कई विशेषज्ञ का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 6000 वर्ष पहले हुआ था और कई इसे महाभारतकालीन मंदिर बताते हैं।

कैसे कटा मां का सिर? - पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने आई थीं. स्नान करने के बाद सहेलियों को इतनी तेज भूख लगी कि भूख से बेहाल उनका रंग काला पड़ने लगा। उन्होंने माता से भोजन मांगा। माता ने थोड़ा सब्र करने के लिए कहा, लेकिन वे भूख से तड़पने लगीं। सहेलियों के विनम्र आग्रह के बाद मां भवानी ने खड्ग से अपना सिर काट दिया, कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और खून की तीन धाराएं बह निकलीं। सिर से निकली दो धाराओं को उन्होंने उन दोनों की ओर बहा दिया. बाकी को खुद पीने लगीं. तभी से मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा।

प्रतिदिन 200 बलि चढ़ती है - मंदिर के सामने बलि का स्थान है. बलि-स्थान पर प्रतिदिन औसतन 100-200 बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है।

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