ईश्वर को याद करना ही काफी नहीं होता है और न ही ईश्वर की भक्ति करने से जल्द फल मिलता है, क्योंकि जब तक हृदय की सरलता और निर्मलता नहीं हो, तब तक न तो ईश्वरीय भक्ति का ही फल प्राप्त होता है और न ही ईश्वर की कृपा मिलती है।
इसलिए ज्योतिष शास्त्र में यह कहा गया है कि मनुष्य अपने हृदय को निर्मल और सरल बनाकर रखे क्योंकि सरलता तथा निर्मलता ही ईश्वरीय ज्योति के समान होती है। यही ज्योति ईश्वर मार्ग को दिखाती है। इसलिए व्यक्ति को निर्मल व सरल हृदय बना रहना चाहिए।
इसके अलावा प्रसन्नता, आत्मानुभव, परमशांति, तृप्ति, आनंद और परमात्मा में स्थिति- ये विशुद्ध सत्वगुण के धर्म है; इनसे व्यक्ति नित्यानंद रस को प्राप्त करता है। ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि भगवान संसार के आश्रय स्थल है, जगत के बंधु है, वे सभी के प्राणों के रक्षक है।