जन्नत का इंतजाम है रमज़ान का 14वां रोजा
जन्नत का इंतजाम है रमज़ान का 14वां रोजा
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माहे-मुबारक रमजान का कारवां अब चौदहवें रोजे तक आ पहुंचा है. रमजान को 14 दिन हो चुके हैं और ये बड़ी सब्र के साथ किया जाता है. इस माह का बेहद ही महत्त्व होता है.  रोज़ादार के लिए वैसे तो हर रोजा खुशियों का खजाना है. मगफिरत यानि मोक्ष के इस अशरे में चौदहवां रोजा जन्नत के दरवाजे पर सब्र की दस्तक है. अमूमन 'मझला रोज़ा' भी शुमार किया जाता है. तो जानते हैं 14 वे रोजे की जानकारी. 

14वे रोजे की अपनी फजीलत (महिमा) और अजमत (गरिमा) है. शरई (तरीके से रखा गया रोजा) जिसमें हर किसी की बुराई, बदगुमानी, बेईमानी, बेहयाई, बेअदबी से बचा जाता है) ईमान का निशान और इंसानियत की पहचान है. चौदहवें रोजे तक आते-आते रोज़ादार सब्र का आदी हो जाता है. इसलिए रोजा रोजादार के लिए जन्नत का फरियादी हो जाता है. हदीस की रोशनी में भी रोजा जन्नत के दरवाजे पर सब्र की दस्तक है. 'मोहम्मद सल्ल. ने फरमाया कि जन्नत के आठ दरवाजे हैं, उनमें एक दरवाज़ा 'रय्यान' है, उसमें इससे वे ही जाएँगे जो रोजा रखते हैं.' 

इसमें मसअला ये है कि जो ईमान की वजह से रोज़ा रखेगा सवाब (पुण्य) के लिए तो उसके सब गुनाह माफ़ कर दिए जाएँगे. जिसने बग़ैर किसी शरई मजबूरी के एक रोज़ा छोड़ दिया तो जमाने भर का रोजा उसकी क़ज़ा (क्षतिपूर्ति) नहीं हो सकता, अगरचे बाद में रख ले. यहाँ यह समझना जरूरी है कि चौदहवें रोजे की आमद (आगमन) दरअसल मग़फ़िरत (मोक्ष) के अशरे (कालखंड) में है. रोजा (सही तरीके से) रखना अल्लाह (ईश्वर) के सामने सबूत रखता है. रोजा, परहेजगारी का एहतिमाम तो है ही जन्नत का इंतजाम भी है.

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