मुस्लिम और ईसाई बन जाने वाले 'दलितों' को SC का दर्जा क्यों नहीं ? केंद्र ने बताया कारण

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने दलित ईसाइयों और दलित मुस्लिमों को अनुसूचित जातियों (SC) की लिस्ट से बाहर किए जाने की वजह बताते हुए कहा है कि ऐतिहासिक आंकड़ों से पता चलता है कि उन्होंने (दलित ईसाइयों और दलित मुस्लिमों) कभी किसी पिछड़ेपन या उत्पीड़न का सामना नहीं किया. दलित ईसाई और दलित मुसलमानों के अनुसूचित जातियों को मिलने वाले फायदों का दावा नहीं कर सकने की दलील देते हुए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में दाखिल किए गए एक हलफनामे में कहा कि 1950 का संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश किसी भी असंवैधानिकता से ग्रस्त नहीं है.

बता दें कि, केंद्र सरकार ने यह हलफनामा गैर सरकारी संगठन (NGO) सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) की एक याचिका के जवाब में दाखिल किया था, जिसमें दलित समुदायों के उन लोगों को आरक्षण और अन्य लाभ देने की मांग की गई थी, जिन्होंने इस्लाम और ईसाई धर्म अपना लिया था. इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार (9 नवंबर) को कहा कि जिस प्रकार कर्मचारियों के लिए हड़ताल एक हथियार है, उसी प्रकार विरोध प्रदर्शन करना नागरिक संस्थाओं के लिए एक साधन है. शीर्ष अदालत ने रवि नंबूथिरी द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. याचिकाकर्ता ने केरल हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें HC ने नवंबर 2015 में रवि के पार्षद चुने जाने को निरस्त करने के लोअर कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था.

दरअसल, पार्षद पद के लिए उनका चुनाव इस आधार पर निरस्त कर दिया गया था क्योंकि, उन्होंने अपने नामांकन में एक आपराधिक मामले में अपनी संलिप्तता को छिपाया था और इस प्रकार उन्होंने एक भ्रष्ट आचरण किया. न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने कहा कि, जिस प्रकार हड़ताल श्रमिकों का और तालाबंदी नियोक्ता के हाथ में एक हथियार की तरह है, उसी प्रकार विरोध प्रदर्शन नागरिक संस्थाओं के लिए एक साधन है. पुलिस की शिकायत के अनुसार, 20 सितंबर, 2006 को नंबूथिरी और अन्य लोग, गैरकानूनी रूप से एकत्र हुए और अन्नामनदा ग्राम पंचायत के कार्यालय परिसर में धरना आयोजित करने के लिए एक अस्थायी पांडाल लगाया. 

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