दिल्ली हिन्दू विरोधी दंगों में आरोपी ताहिर हुसैन की याचिका ख़ारिज, रुकवाना चाहता था ED की जांच, हिंसा के लिए की करोड़ों की हेराफेरी

नई दिल्ली: 14 दिसंबर को, दिल्ली के शहादरा जिले में कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले पर रोक लगाने की याचिका खारिज कर दी। हुसैन ने अपनी याचिका में अदालत से फरवरी 2020 के हिंदू विरोधी दिल्ली दंगों से संबंधित एक अन्य मामले में उनके खिलाफ आरोप तय होने तक मामले पर रोक लगाने का अनुरोध किया था।

ताहिर हुसैन, इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) अधिकारी अंकित शर्मा की नृशंस हत्या सहित दंगों से संबंधित कई मामलों में आरोपी है। उस पर दंगों के पीछे बड़ी साजिश रचने का भी आरोप है। दिल्ली पुलिस उसके खिलाफ आपराधिक मामलों की पैरवी कर रही है। दूसरी ओर, प्रवर्तन निदेशालय (ED) इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग का मामला चला रहा है। ED के अनुसार, हुसैन ने नागरिक संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हिंदू विरोधी दंगों को वित्तपोषित करने के लिए शेल कंपनियों का उपयोग करके करोड़ों रुपये की हेराफेरी की थी।

14 दिसंबर को अपने आदेश में, न्यायमूर्ति रावत ने आरोपी ताहिर हुसैन की दलीलों को खारिज कर दिया कि इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध की कोई कार्यवाही नहीं हुई थी। इसी तरह के मामलों में अपील पहले ही दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दी गई है जिसका उल्लेख आदेशों में किया गया था। न्यायमूर्ति रावत ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत मामला किसी व्यक्ति के खिलाफ तभी दर्ज किया जाता है, जब कोई पूर्व निर्धारित अपराध हो, जो इस मामले में दंगे भड़काने की साजिश है।

अदालत ने कहा कि, 'एक बार PMLA की जांच शुरू हो जाने के बाद, इसे एक अलग मामले के रूप में भी चलाया जाता है। इस प्रकार, विधेय अपराध PMLA के तहत एक मामले की शुरुआत को ट्रिगर करता है, लेकिन इसकी न केवल स्वतंत्र रूप से जांच की जाती है, बल्कि स्वतंत्र रूप से और अलग से भी कोशिश की जाती है। आदेश में आगे लिखा है कि, 'यह भी स्पष्ट है कि यदि विधेय अपराध में आरोपमुक्त करने या बरी करने का आदेश दिया जाता है, तो PMLA मामले में कार्यवाही रुक जाएगी। इसका मतलब यह नहीं है कि यदि आरोप या दोषसिद्धि पर कोई आदेश है, तो PMLA मामले में भी स्वत: दोषसिद्धि हो जाएगी।''

अदालत ने कहा कि यदि मामले पर रोक लगा दी गई, तो इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक गवाह खो सकते हैं। इसके अलावा, कार्यवाही पर रोक लगाने का कानून द्वारा कोई आदेश नहीं था। मामले में साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग पर रोक लगाने से गवाहों के उपलब्ध होने पर भी मामला खतरे में पड़ जाएगा। अदालत ने कहा है कि, 'ऐसी परिस्थितियों में, यह तर्क देना कि जब तक कोई आरोप या दोषसिद्धि न हो, PMLA के तहत कार्यवाही रोक दी जानी चाहिए, कानून द्वारा अनिवार्य नहीं है। यदि PMLA मामले को आरोप लगने तक या इसी तर्क के आधार पर दोषसिद्धि के माध्यम से मामले के समापन तक रोक दिया जाता है, तो गवाह, विशेष रूप से सार्वजनिक गवाह, खो सकते हैं।'

विशेष रूप से, ताहिर हुसैन के खिलाफ PMLA की संबंधित धाराओं के तहत आरोप जनवरी 2023 में तय किए गए थे। उस समय, अभियोजन पक्ष द्वारा यह नोट किया गया था कि साजिश रची गई थी और हुसैन के खिलाफ एक स्पष्ट मामला था। मनी लॉन्ड्रिंग मामले के अलावा, ताहिर हुसैन पर IB अधिकारी शर्मा की नृशंस हत्या से जुड़े मामले में भी आरोप लगाए गए थे। साथ ही भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 147, 148, 149, 153ए, 302, 365, 120बी और 188 के तहत आरोप तय किए गए थे।

दिल्ली दंगों को क्यों कहा जाता है हिन्दू विरोधी दंगा ?

बता दें कि, 2020 दंगों को हिन्दू विरोधी दंगे इसलिए कहा जाता है, क्योंकि, दंगों का मुख्य आरोपी और आम आदमी पार्टी (AAP) का पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन खुद कबूल चुका है कि, उसने हिन्दुओं को सबक सीखाने के लिए यह साजिश रची थी। उसने इलाके के CCTV तुड़वा दिए थे और अपने लोगों को लाठी-डंडों और हथियारों को इकठ्ठा करने के लिए कहा था। जबकि, दूसरी तरफ हिन्दुओं को यह पता ही नहीं था, कि उन पर हमला करने के लिए कई दिनों से तैयारी चल रही है। किसी भी अनहोनी की आशंका से बेफिक्र हिन्दुओं पर जब हमला हुआ, तो वे खुद को बचा भी न सके। कोर्ट ने यह भी माना है कि सबूतों से यह पता चला है कि तमाम आरोपित हिंदुओं को निशाना बनाने, उन्हें मारने और संपत्तियों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुँचाने में लिप्त थे। हिंदुओं पर अंधाधुंध फायरिंग यह स्पष्ट करती है कि यह भीड़ जानबूझकर हिंदुओं की हत्या चाहती थी। हिंदुओं की दुकानों को आग के हवाले किया जाने लगा, लूटा जाने लगा और पत्थरबाजी चालू हो गई। इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 200 से अधिक घायल हुए थे।  

 

इसी हिन्दू विरोधी दंगे में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के अफसर अंकित शर्मा की भी हत्या की गई थी, उनके शरीर पर चाक़ू के 51 जख्म निशान मिले थे। यानी नफरत इस हद तक थी कि, मौत होने के बाद भी अंकित को लगातार चाक़ू मारे जा रहे थे, उनकी लाश AAP के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन के घर के पास स्थित एक नाले से मिली थी। यहाँ तक कि, ताहिर हुसैन पर आरोप तय करने वाली कोर्ट खुद यह कह चुकी है कि, दंगाई भीड़ का मकसद केवल और केवल हिन्दुओं को मरना और उन्हें नुकसान पहुँचाना था। वहीं, तत्कालीन AAP पार्षद खुद यह कबूल चुका है कि, उनका मकसद हिन्दुओं को सबक सिखाना ही था। 

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