'हमारी पृथ्वी कोई वस्तु नहीं, बल्कि जीवित प्राणी है.. इसके पास अपनी बुद्धि भी..', अथर्ववेद की बात पर साइंस की मुहर

नई दिल्ली: एक नए वैज्ञानिक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि पृथ्वी एक ‘जीवित वस्तु’ है। रिसर्च के बाद एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट ने पाया है कि जिस पृथ्वी पर हम लोग रहते हैं, वो न केवल जीवित है बल्कि उसके पास अपनी बुद्धि भी है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘प्लानटेरी इंटेलिजेंस’ नाम दिया है। जिसमें किसी भी ग्रह के पास सामूहिक ज्ञान से लेकर उस ग्रह के जानने-समझने की क्षमता की बात भी की गई है। इस अध्ययन को ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एस्ट्रोबायोलॉजी’ में छापा गया है। बता दें कि भारत के वेदों में ही पृथ्वी को जीवित मानते हुए इसे ‘भूदेवी’ कहा गया है। अर्थववेद में लिखा है कि पृथ्वी केवल एक वस्तु नहीं, बल्कि एक जीवित प्राणी है।

 

इस रिसर्च पेपर में वैज्ञानिकों ने कहा है कि ऐसे कई प्रमाण मिले हैं, जो बताते हैं कि पृथ्वी पर फंगी का अंडरग्राउंड नेटवर्क मौजूद है। ये आपस में निरंतर ‘बातचीत’ करते रहते हैं। इससे रेखांकित किया गया है कि पृथ्वी के पास अपनी ‘अदृश्य बुद्धिमत्ता’ मौजूद है। इस पेपर को तैयार करने वाले ‘यूनिवर्सिटी ऑफ रोचस्टर’ के एडम फ्रैंक ने जानकारी दी है कि हम सामुदायिक रूप से ग्रह के इंट्रेस्ट्स में उन्हें प्रतिक्रिया नहीं दे सकते। उनका इशारा उन मानवीय गतिविधियों की ओर था, जिससे पृथ्वी पर प्रभाव पड़ रहा है।

 

पृथ्वी में ये बदलाव मानवीय गतिविधियों के कारण पर्यावरण, प्रदूषण और संसाधनों के दोहन में आ रहे हैं। अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी की बुद्धि और ज्ञान को समझ कर हमें यह पता चलेगा कि हम इसके साथ कैसा व्यवहार करें और इसकी साहयता करने के साथ-साथ संसाधनों का इस्तेमाल किस तरह से करें। उनका मानना है कि इससे मानवों को एलियंस की खोज में भी सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि सच्ची ‘प्लानटोरी इंटेलिजेंस’ तभी देखने को मिलेगा, जब तकनीक के उच्च-स्तर पर पहुँची सभ्यता एक-दूसरे को मार नहीं डालेगी।

रिसर्च करने वालों का मानना है कि इस अध्ययन से जलवायु परिवर्तन से निपटने के तौर-तरीकों के साथ-साथ दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाएँ तलाशने में भी सहायता मिलेगी। ऐसे ग्रह, जहाँ ‘जीवन’ और ‘बुद्धिमत्ता’ का विकास हो सके। ‘ग्रहीय बुद्धिमत्ता’ के कॉन्सेप्ट पर विचार करें तो पृथ्वी के पास तर्क-वितर्क की क्षमता के साथ ही फंगस के जरिए सूचनाओं के आदान-प्रदान की योग्यता भी है। ये ऐसा ही है, जैसे पेड़-पौधे फोटोसिंथेसिस के जरिए अपने आप को जीवित रखते हैं।

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