मां ब्रह्मचारिणी को लगाए यह भोग, जानिए उनके जन्म की कथा का सार

आज नवरात्र का दूसरा दिन है और आज मां के भक्त उनके दूसरे रूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करके उन्हें प्रसन्न करने के लिए पूजन करते हैं. ऐसे में मां के नाम का पहला अक्षर ब्रह्म होता है जिसका मतलब होता है तपस्या और चारिणी मतलब होता है आचरण करना. वहीं मां ब्रह्मचारिणी ने अपने दाएं हाथ में माला और अपने बाएं हाथ में कमंडल धारण किया हुआ है और कहते हैं मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए एक हजार वर्ष तक कठोर तपस्या की थी. इसी के साथ इस दौरान मां ने फल-फूल खाकर बिताए और हजारों वर्ष तक निर्जल और निराहार रहकर तपस्या की और इसी वजह से उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा था. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि उन्हें क्या भोग लगाए और उनके जन्म की कथा का क्या सार है.

मां ब्रह्मचारिणी को पसंद है ये भोग- कहा जाता है देवी मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल का फूल बेहद पसंद है और इसलिए इनकी पूजा के दौरान इन्हीं फूलों को देवी मां के चरणों में अर्पित करें. वहीं मां को चीनी और मिश्री काफी पसंद है इसलिए मां को भोग में चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग लगाएं और मां ब्रह्मचारिणी को दूध और दूध से बने व्‍यंजन अति प्रिय होते हैं, इस कारण से आप उन्‍हें दूध से बने व्‍यंजनों का भोग लगा सकते हैं और इस भोग से देवी ब्रह्मचारिणी आपको लंबी आयु का सौभाग्य देंगी.

मां ब्रह्मचारिणी की कथा का सार - मां की कथा से यह सीख मिलती है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए.मां श्वेत वस्त्र धारण किए हैं. कहते हैं मां त्याग और तपस्या की देवी हैं और मां अपने भक्तों को ऊर्जा प्रदान करती हैं. जिस तरह मां ने जब तक भगवान शिव को पा नहीं लिया तब तक तपस्या करती रहीं. उसी प्रकार से मनुष्य को भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक अपने प्रयास नहीं छोड़ने चाहिए. कहा जाता है मां की आराधना से विद्यार्थियों को विशेष लाभ प्राप्त होता है और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों को इस दिन मां की अर्चना अवश्य करनी चाहिए.

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