लड़कियों के लिए मानसिक और भावनात्मक घाव है खतना : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दाउदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों का खतना करके उन्हें हमेंशा के लिए एक मानसिक और भावनात्मक घाव दे दिया जाता है. इसी के साथ कोर्ट ने ये भी कहा कि ये प्रथा महिलाओं के सम्मान और उनके अधिकारों के खिलाफ है जो उन्हें संविधान के खिलाफ है.

सोमवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने कहा कि 'यह बिलकुल जरुरी नहीं है कि लम्बे समय से चली आ रही किसी भी धार्मिक परंपरा को संवैधानिक मान लिया जाए. इस तरह की प्रथा के नाम पर किसी भी शख्स को जख्म नहीं दे सकते है. पति के लिए जवान लड़कियों पर ऐसी प्रथा नहीं थोपी जा सकती है. छोटी बच्चियों के लिए तो इस तरह का खतना जीवनभर के लिए घाव हो जाता है.

आपको बता दें इससे पहले 30 जुलाई को खतना के विरोध में दायर की हुई याचिका के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं का खतना सिर्फ इसलिए नहीं किया जा सकता कि उन्हें शादी करनी है. कोर्ट ने ये भी कहा था कि महिलाओं का जीवन सिर्फ पति और शादी के लिए नहीं होता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें महिलाओं का खतना किये जाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट से देशभर में बैन लगाने की मांग की गई है.

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