Malang Movie Review: फिल्म मलंग से मोहित सूरी दिखाए रिश्तो के रंग

भट्ट खेमे से प्रशिक्षित होकर निकले फिल्मकारों की तमाम खासियतों में से एक ये भी होती है कि वे रिश्तों के ऐसे रंग अपनी कहानियों में लेकर आते हैं जिनकी आमतौर पर आम फिल्म निर्देशक कल्पना भी नहीं कर पाते है। इसके अलावा जिंदगी के इंद्रधनुषी रंगों में से वे स्याह रंगों को चटकीला बनाते हैं। वही रुपहले परदे पर मनमोहक दृश्यावली सजाते हैं और कोशिश करते हैं कि कहानी में सुरों का तालमेल कायदे से पिरोया जाए। इसके साथ में हो ऐसी अदाकारी जिसे देख दर्शकों में भावनाओं का ज्वार भाटा शुरू से आखिर तक उफान लेता रहे। वही मोहित सूरी इस फन के उस्ताद निर्देशक माने जाते हैं।मोहित सूरी की नई फिल्म मलंग की कहानी गोवा के चार ऐसे किरदारों की कहानी है जो पांच साल के अंतराल पर मिलते हैं। एक क्रिसमस की रात उनकी जिंदगी में तूफान लेकर आती है। इसके साथ ही  क्या सही है, क्या गलत है, इसका फर्क मिटता जाता है। वही हर किरदार बाकी सब से बेफिक्र होकर हो जाता है, मलंग। ऐसा ही एक मलंग है अद्वैत। इतिहास उसका ज्यादा अच्छा नहीं हैं। और ऐसा ही कुछ हो रहा है सारा के साथ। इसके साथ ही दोनों दुनियादारी से दूर गोवा में गुम हो जाना चाहते हैं। इसके अलावा इंस्पेक्टर अगाशे के लिए अद्वैत एक चुनौती बनकर लौटता है। इंस्पेक्टर माइकल और टेरेसा के रिश्तों में जज्बात की तासीर घुली है। वही माइकल और अगाशे की कहानी सुलटने भी नहीं पाती कि जेसी नाम की एक लड़की का सिरा माइकल के हाथ आ जाता है। इसके साथ ही अगाशे और अद्वैत की आंखें मिलती हैं। वही रास्ते दो चार होते हैं। और, रिश्ते फिर तार तार होने लगते हैं।

फिल्म मलंग में गोवा भी एक किरदार है। कुछ कुछ वैसा ही जैसे इसके पहले फाइंडिंग फैनी, दम मारो दम या फिर गो गोवा गॉन में रहा है। अधिक दूर तक जाएं तो अमिताभ बच्चन की पुकार भी याद आ सकती है। गोवा जब भी कहानी का किरदार होता है, अपने साथ करने को बहुत कुछ ले आता है। मोहित सूरी का गोवा मलंग है। इसमें जिंदगी का नशा भी है और नफासत भी है। बतौर निर्देशक मोहित फिल्म मलंग का ताना बाना इसी गोवा में बुनते हैं और अपने किरदारों पर गोवा की बेफिक्री का मुलम्मा सही तरीके से से चढ़ाने में कामयाब भी होते हैं। वही कलाकारों के लिहाज से देखें तो मलंग आदित्य रॉय कपूर की फिल्म है। हिंदी सिनेमा के एक चॉकलेटी हीरो को रैम्बो सरीखे डील डौल में पेश करना जोखिम भरा फैसला रहा होगा। परन्तु , मोहित और आदित्य दोनों ने मिलकर सब कुछ मलंग कर डाला है। दिशा पटानी भी इस बार अपनी पिछली फिल्मों से अलग रंग में हैं। वह खूबसूरती वाला हिस्सा तो दमदार तरीके से परदे पर सजाती ही हैं, वही अदाकारी में भी वह अपनी पिछली फिल्मों से चार कदम आगे हैं। और, अनिल कपूर। हिंदी सिनेमा का ये सदाबहार मुन्ना मनमौजी है। इसके साथ ही मन का किरदार हो तो इस कलाकार को सरहदों में बांधना मुश्किल है। बाकी कलाकार भी अपनी चालें अपने अपने खानों के हिसाब से बिसात पर सही चलने में सफल रहे हैं। हर प्यादा अपने खेमे के वजीर पर भारी है। शह और मात के इस खेल में मोहित ने पूरी बिसात में तमाम दूसरी कहानियां भी पिरोई हैं जो दर्शकों को आखिर तक बांधे रखने की कोशिश करती दिखती हैं।

फिल्म का एक्शन शुरुआत से ही फिल्म का रुख बता देता है। मोहित की तकनीकी टीम भी किसी मलंग से कम नहीं है। विकास शिवरामन की सिनेमैटोग्राफी फिल्म को नयनाभिराम बनाती है।वही राजू सिंह का बैकग्राउंड म्यूजिक इसे बेहतर सांसे देता है। देवेंद्र मुरदेश्वर की कैंची जरूर कहीं कहीं सुस्त होती दिखती है। संपादन फिल्म का बेहतर हो सकता था। फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है इसका संगीत। इसके साथ ही मिथुन, अंकित तिवारी, असीम अजहर, वेद शर्मा और तमाम और भी संगीतकारों ने फिल्म को इसके मूड के हिसाब से अलग अलग कलेवर का संगीत देने की कोशिश की है परन्तु फिल्म का कोई एक पैटर्न संगीत के मामले में तय नहीं हो पाता है। वही रोमांटिक थ्रिलर फिल्मों के मामले में हिंदी सिनेमा में काम कम ही हुआ है, वही इस मामले में मोहित सूरी की फिल्म मलंग दर्शकों का मनोरंजन करने में सफल रही है। आशिकी 2 की तरह फिल्म कल्ट फिल्म का दर्जा भले न पा सके लेकिन वीकएंड पर ये अच्छा टाइमपास जरूर है। 

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