द्रौपदी का चीर हरण के बाद पांडवो को मिला 12 वर्ष का वनवास

टीवी का जाना माना सीरियल महाभारत में द्युत क्रीड़ा गृह में सभी के सामने दुशाशन द्रौपदी का चीरहरण करता है. अपने साथ हुए इस अत्याचार पर द्रौपदी क्रोध में आकर श्राप देने ही वाली होती है कि तभी उस सभा मे गांधारी आ जाती हैं जो द्रौपदी को श्राप देने से रोक लेती हैं.गांधारी रोते हुए द्रौपदी को अपने सीने से लगा लेती हैं और दुर्योधन पर क्रोध करते हुए कहती है कि,'' दुर्योधन, भाभी का वस्त्र हरण तो करवा चुका अब दुशाशन से कह की वो तेरी मां गांधारी का वस्त्रहरण करे." अपनी माँ की यह बात पर दुर्योधन सिर झुका लेता है. गांधारी दुर्योधन को ये भी बताती हैं कि जब दुर्योधन का जन्म हुआ था तभी विदुर ने कहा था कि ये कुरुवंश का काल है इसे मार देने में ही भलाई है लेकिन पुत्र मोह ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया. वहीं गांधारी द्रौपदी के आगे हाथ जोड़कर कहती है कि वो धृतराष्ट्र, तातश्री भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य को श्राप ना दे.इसपर द्रौपदी कहती हैं कि वो सबको क्षमा कर सकती हैं लेकिन दुर्योधन, दशांशन, कर्ण और शकुनि मामा को कभी क्षमा नहीं करेंगी. लेकिन गांधारी हाथ जोड़ते हुए उन्हें क्षमा करने को कहती हैं. धृतराष्ट्र भी द्रौपदी से कहते हैं कि अगर तुमने मुझे क्षमा कर दिया है तो मुझसे कोई वर मांगो. 

इसके अलावा इसपर द्रौपदी सम्राट युधिष्टर के लिए दासत्व से मुक्ति मांगती हैं ताकि उसके पुत्र दासपुत्र ना कहलाएं. धृतराष्ट्र, युधिष्टर को दासत्व से मुक्त करके द्रोपदी से और कोई वर मांगने को कहते हैं, तो द्रौपदी चारों पांडवों के लिए भी यही वरदान मांगती हैं साथ ही उनके शस्त्र, अस्त्र और रथ भी मांगती है. धृतराष्ट्र ये भी दे देते हैं. साथ ही युधिष्टर जो भी इस द्यूत क्रीड़ा में हारा है वो सब धृतराष्ट्र युधिष्टर को लौटा देते हैं.इसके अलावा द्रौपदी के साथ हुए इस अन्याय को सुनकर मां कुंती दौड़ी दौड़ी द्रोपदी के पास आती हैं. अपने पुत्रों के इस कर्म को कोसती हैं. उधर विदुर गांधारी के कक्ष में आते हैं, गांधारी द्रोपदी के अपमान को लेकर विदुर पर अपना क्रोध जताती है और अपने पुत्र के कुकर्मों पर रोती हैं और शोक मनाती हैं. तभी विदुर भी अपनी व्यथा बताते हैं कि भरी सभा में दुर्योधन ने उसका भी अपमान किया है और उसको ऐसा करने पर महाराज धृतराष्ट्र ने कुछ नहीं बोला.वहीं ये बात विदुर के दिल पर लगी है और अब अपने प्रश्नों को लेकर वो दर-दर भटक रहे हैं उत्तर पाने के लिए.वहां द्रोणाचार्य भी भीष्म के कक्ष पर आते हैं और द्रौपदी के साथ हुए अत्याचार को लेकर अपने जीवित होने पर प्रश्न उठा रहे हैं. 

आपकी जानकारी के लिए बता दें की भीष्म भी बहुत दुखी हैं और द्रौपदी के उन प्रश्नों ने उनके दिल को कचोट रखा है जो द्रौपदी ने द्यूत क्रीड़ा गृह में उनसे पूछे थे. वहीं भीष्म को भविष्य में होने वाले युद्ध का आभास हो गया है इसीलिए वो द्रोणाचार्य से कहते हैं कि हस्तिनापुर के मुख पर जो कालिख पुती है उसको पोछने के लिए सबको अपना लहू देना होगा.तभी वहां अर्जुन आता है, इन्द्रपस्थ जाने के पहले भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य का आशीर्वाद लेने. इसके साथ ही वो ये भी कहता है कि उसके दिल में जो प्रतिशोध की ज्वाला दहक रही है उसे वो कैसे शांत करे. रोते हुए अर्जुन ये भी कहता है कि महाराज धृतराष्ट्र ने भले ही युधिष्टर को सब लौटा दिया है परन्तु द्रौपदी का मान नहीं लौटाया, दुशासन, दुर्योधन और कर्ण को कोई दंड नहीं दिया. वहीं हस्तिनापुर का ये ऋण तभी उतरेगा जब हस्तिनापुर दुर्योधन, दुशासन,कर्ण और शकुनि के शव उन्हें देगा. तभी भीष्म पितामह कहते हैं कि उन शवों के साथ कई और शव जिसमें द्रोणाचार्य और भीष्म का शव भी शामिल है वो भी उन्हें स्वीकारने होंगे. क्यूंकि भीष्म हस्तिनापुर के द्वारपाल हैं यदि  कोई शत्रुता का भाव लेकर हस्तिनापुर आएगा तो उसे सबसे पहले भीष्म से लड़ना होगा.

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