एकादशी के दिन करें श्री विष्णु जी के इन मन्त्रों का जाप

हिंदू (Hindu) धर्म में हर महीने के कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष में पड़ने वाली एकादशी (Ekadashi) को बहुत महत्वपूर्ण कहा जाता है। जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि जो भी एकादशी के दिन का व्रत रखना है उसके सभी दु:ख-दर्द दूर हो जाते हैं और उसकी सभी और मनोकामनाएं पूरी होती है। हालाँकि इस समय चैत्र मास (Chaitra Month) चल रहा है और इस महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी सभी मनोकामनाओं को पूरा करने और सुख-समृद्धि और सौभाग्य की वर्षा करने वाली मानी जाती है। कहा जाता है इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की कृपा पाने के लिए विष्णु जी की आरती करनी चाहिए और उनके मन्त्रों का जाप करना चाहिए। तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं श्री विष्णु के मंत्र और उनकी आरती।

श्री विष्णु के मंत्र- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय   2. श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे।   हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।   3. ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।   4. ॐ विष्णवे नम:   5. ॐ हूं विष्णवे नम:   6 ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।     7.  लक्ष्मी विनायक मंत्र -  दन्ताभये चक्र दरो दधानं, कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्। धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।   8. धन-वैभव एवं संपन्नता का मंत्र -  ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।  ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।   9. सरल मंत्र - ॐ अं वासुदेवाय नम: - ॐ आं संकर्षणाय नम: - ॐ अं प्रद्युम्नाय नम: - ॐ अ: अनिरुद्धाय नम: - ॐ नारायणाय नम: श्री विष्णु जी की आरती- ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे। भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे।

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का। सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे।

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी। तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ओम जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। स्वामी तुम अन्तर्यामी। पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ओम जय जगदीश हरे।

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता। स्वामी तुम पालन-कर्ता। मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ओम जय जगदीश हरे।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति। किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ओम जय जगदीश हरे।

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। स्वामी तुम ठाकुर मेरे। अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ओम जय जगदीश हरे।

विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा। स्वमी पाप हरो देवा। श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा॥ ओम जय जगदीश हरे।

श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ ओम जय जगदीश हरे।

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