उत्तराखंड में विकास की कीमत देने के लिए हिमालय कभी भी कर सकता है इनकार

देहरादून: COVID-19 कि वजह से भले ही चारों तरफ संकट मचा हुआ हो, किन्तु यही कोरोना है जिसने पर्यावरण तथा अर्थव्यवस्था के मध्य के रिश्ते का निरिक्षण और गहराई से करने का संकेत भी दिया है. COVID-19 संक्रमण के लॉकडाउन समय में यह भी सामने आया कि हवा, पानी आदि की क़्वालिटी में सुधार हुआ. यह सभी आर्थिक गतिविधियों पर लगे ब्रेक का नतीजा भी था. अब अनलॉक में दोबारा आर्थिक गतिविधियां आरम्भ हुई हैं, किन्तु एक सबक के साथ. यह सबक है-इकोनॉमिक्स को बढ़ाने में पर्यावरण को हानि न पहुंचने देने का.

एक्सपर्ट्स की नजर में इकोनॉमिक्स ने बढ़ाने में पर्यावरण कि हानि का आकलन न करने के राज्य के संदर्भ में गंभीर नतीजा सामने आएंगे. जलवायु बदलाव कि वजह से हिमालय पूर्व में ही दबाव में है. ऐसे में इकोनॉमिक्स को परंपरागत ढंग से बढ़ाने में हिमालय पर यह दबाव बढ़ रहा है. उत्तराखंड में ही प्रत्येक वर्ष राज्य सरकार को मानसून के चलते सड़कों के टूटने तथा भूस्खलन आदि कि वजह से करोड़ों कि हानि उठाना पड़ रही है. 

वही यह हानि राज्य के टूरिस्म डिपार्टमेंट के कुल बजट से कहीं अधिक है. कई गांव माहों तक सड़क टूटने कि वजह से अन्य इलाकों से कटे हुए रहते हैं. वही विकास का यह तरीका एक और रूप में सामने आ रहा है. यह रूप हिमालयी इलाके में नदियों, पर्वतों में अटे पड़े कूड़े के ढेर के तौर पर सामने आ रहा है. प्लास्टिक कचरा बढ़ता ही जा रहा है, तथा नगर निकाय इस कूड़े के ढेर को संभालने में समर्थ महसूस नहीं कर रहे हैं. वही अब देखना ये है कि सरकार द्वारा क्या फैसला लिया जाता है.

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