कोरोना से भारत में 47 लाख मौत ? राहुल गाँधी के लिए भी 'विदेशी रिपोर्ट' ही सत्य., जानिए भारतीय एक्सपर्ट्स की राय

नई दिल्ली: भारत में कोरोना वायरस की वजह से हुई मौत को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट पर भारतीय विशेषज्ञों ने नाराजगी प्रकट की है। उन्होंने 'सभी के लिए एक ही नीति' पर निराशा जताते हुए WHO के गणना करने के तरीके पर भी सवाल खड़े किए हैं। WHO ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि दो सालों में पूरे विश्व में लगभग 1.5 करोड़ लोगों की जान गई है। जबकि, भारत में संक्रमण के चलते 47 लाख लोगों की मौत हुई। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने WHO की इस रिपोर्ट सच माना है, और इसे हथियार बनाकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है।

वहीं, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव, नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने WHO की रिपोर्ट आपत्ति जाहिर की है। इसके साथ ही विशेषज्ञों ने इसे दूर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। वहीं, ICMR के महानिदेशक डॉक्टर भार्गव ने कहा है कि, 'जब हमारे यहां कोरोना संक्रमण से मौतें हो रहीं थी, तो हमारे पास मौतों की परिभाषा नहीं थी। यहां तक की WHO के पास भी यह परिभाषा नहीं थी। यदि कोई आज संक्रमित हो और दो हफ्ते बाद मर जाए, तो क्या वह कोविड से मौत होगी? या संक्रमित व्यक्ति की मौत 2 महीने या 6 महीने बाद हो, तो क्या वह कोविड से मौत गिनी जाएगी ?' डॉ भार्गव ने कहा कि, 'इस परिभाषा के लिए हमने पूरे डेटा को देखा और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कोरोना टेस्ट में संक्रमित पाए जाने के बाद 95 फीसदी मौतें पहले 4 सप्ताह में हुईं। ऐसे में मौत की परिभाषा के लिए 30 दिनों का कट-ऑफ रखा गया।'

डॉ भार्गव ने कहा कि, 'हमारे पास इतनी बड़ी मात्रा में डेटा है। हमारे पास 1.3 बिलियन में से पहला डोज ले चुके 97-98 फीसदी का डेटा है और करीब 190 करोड़ वैक्सीन डोज का इस्तेमाल किया जा चुका है। यह सब व्यवस्थित तरीके से जुटाया गया है। एक बार हमारे पास व्यवस्थित डेटा होता है, तो हमें मॉडलिंग, एक्स्ट्रापोलेशन्स और प्रेस रिपोर्ट्स लेने और उनका इस्तेमाल मॉडलिंग में करने की आवश्यकता नहीं है।' वहीं, AIIMS के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने भी रिपोर्ट पर आपत्ति जताते हुए कहा कि भारत में जन्म और मृत्यु पंजीकरण की बेहद मजबूत प्रणाली है और वे आंकड़े उपलब्ध हैं, मगर WHO ने उन आंकड़ों का इस्तेमाल ही नहीं किया है।

वहीं, नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने WHO की रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि भारत वैश्विक निकाय को पूरी विनम्रता से और राजनयिक चैनलों के माध्यम से, आंकड़ों और तर्कसंगत दलीलों के साथ स्पष्ट तौर पर कहता रहा है कि वह अपने देश के लिए अपनाई गई कार्यप्रणाली से सहमत नहीं है। उन्होंने कहा कि, 'अब जबकि सभी कारणों से ज्यादा मौतों की वास्तविक संख्या उपलब्ध है, सिर्फ मॉडलिंग आधारित अनुमानों का इस्तेमाल करने का कोई औचित्य नहीं है।'

पॉल ने आगे कहा कि, 'दुर्भाग्य से, हमारे निरंतर लिखने, मंत्री स्तर पर संवाद के बावजूद, उन्होंने मॉडलिंग और धारणाओं पर आधारित संख्याओं का इस्तेमाल चुना है।' उन्होंने कहा कि भारत जैसे विशाल आकार वाले देश के लिए इस तरह की धारणाओं का उपयोग किया जाना और 'हमें खराब तरीके से पेश करने से सहमत नहीं है।' राष्ट्रीय टीकाकरण तकनीकी परामर्श समूह (NTAGI) के अध्यक्ष एन के अरोड़ा ने रिपोर्ट को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि कई विकसित देशों की तुलना में भारत की मृत्यु दर (प्रति दस लाख) सबसे कम है।

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