विजय दिवस: पाकिस्तान को मजबूर कर भारतीय एयरफोर्स ने मिनटों में मोड़ दिया था 1971 युद्ध का रुख

हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि बांग्लादेश के पूर्वी पाकिस्तान से एक आजाद देश बनने के लिए भारत ने एक अहम भूमिका निभाई थी. जी हाँ, साल 1947 में भारत के बंटवारे के बाद बने 1947 में बने पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच शुरू से ही भाषायी आधार पर जातीय तनाव था. सभी जानते हैं कि बांग्लादेश के जनक माने जाने वाले और 'बंगबंधु' के नाम से विख्यात शेख मुजीब उर रहमान ने 25 मार्च 1971 की आधी रात को पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी की घोषणा कर दी और वहां 'मुक्ति युद्ध' शुरू हो गया और इस विद्रोह को दबाने के लिए पाकिस्तानी सेना ने 'ऑपरेशन सर्चलाइट' चलाते हुए जुर्म की सभी हदों को पार कर दिया था.

आपको बता दें कि पूर्वी पाकिस्तान में उसके अभियान में एक लाख से ज्यादा लोगों का नरसंहार हुआ था. उस समय भारतीय सेना ने एक अलग ही अंदाज में पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया था और उस समय की कहानी बहुत दिलचस्प है. जी दरअसल भारतीय सेना ने 14 दिसंबर 1971 को महज तीन मिनट में ही कुछ ऐसा कर दिखाया था, जिसके बाद पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण करने में देर नहीं लगाई थी. अगर सामने आई एक रिपोर्ट की माने तो भारतीय सेना द्वारा 14 दिसंबर 1971 को महज 'तीन मिनट' में ही पाकिस्तान को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने का किस्सा बहुत रोमांचक है. कहा जाता है पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर डॉक्टर एएम मलिक 14 दिसंबर को ढाका स्थित सर्किट हाउस में एक बैठक करने वाले थे, जिसमें पाकिस्तानी प्रशासन के सभी आला अधिकारियों को हिस्सा लेना था और भारतीय सेना ने ढाका में होने वाली इस बैठक पर बमबारी करते हुए पाकिस्तानी प्रशासन की निर्णय लेने की क्षमता को ही समाप्त करने का फैसला किया.

वहीं गुवाहाटी में मौजूद भारतीय एयरफोर्स के विंग कमांडर बीके बिश्नोई को ढाका के सर्किट हाउस पर हमला करने का आदेश दिया गया और बिश्नोई को इसके लिए कोई स्पष्ट नक्शा न देकर महज एक टूरिस्ट मैप दिया गया. उसके बाद बिश्नोई का कहना था कि उस समय हमले के लिए महज 24 मिनट का वक्त था और इनमें से 21 मिनट तो गुवाहाटी से ढाका पहुंचने में ही लग जाते और इस बीच बिश्नोई को फिर संदेश दिया गया कि अब लक्ष्य सर्किट हाउस न होकर गवर्नर हाउस है. वहीं इस दौरान पश्चिमी कमांड ने विंग कमांडर एसके कौल को भी ढाका के गवर्नर हाउस को नेस्तनाबूत करने का फरमान दे दिया और कौल को भी नक्शे के नाम पर एक टूरिस्ट मैप ही मिला. इसी दौरान विंग कमांडर बीके विश्नोई ढाका पहुंच चुके थे और उनके एक साथी पायलट ने जल्द ही गवर्नर हाउस हाउस खोज निकाला. कहा जाता है इस दौरान गवर्नर हाउस में गवर्नर डॉक्टर एएम मलिक अपने मंत्रिमंडल के साथ चर्चा कर रहे थे और तभी संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधि जॉन केली भी वहां आ पहुंचे. वहीं केली ने मलिक को पद छोड़ने की सलाह देते हुए कहा कि मुक्तिवाहिनी उन्हें निशाना बना सकती है. लेकिन मलिक ने पद छोड़ने से साफ इनकार कर दिया और जब ये बैठक चल रही थी तभी गवर्नर हाउस दहल उठा और विंग कमांडर बिश्नोई के छोड़े रॉकेट भवन पर आकर गिरने लगे. वहीं बिश्नोई के नेतृत्व में उड़ रहे चार मिग-21 विमानों ने पलक झपकते हुए गवर्नर हाउस पर 128 रॉकेट दागे.

इस बीच जी बाला के नेतृत्व में दो और मिग-21 विमानों ने भी वहां रॉकेट दागे और इस हमले से गवर्नर हाउस में भगदड़ मच गई और लोग जान बचाकर इधर-उधर भागने लगे. वहीं गवर्नर मलिक और उनके सहयोगी जान बचाने के लिए एक बंकर में घुस गए थे और उधर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि केली जोकि बमबारी के बाद वहां से एक मील दूर अपने दफ्तर में चले गए थे, दोबारा मलिक से मिलने पहुंचे. लेकिन वह अब भी इस्तीफा देने को तैयार नहीं थे और अपने सहयोगियों से विचार-विमर्श कर रहे थे. कहा जाता है केवल 45 मिनट के अंदर गवर्नर हाउस पर विंग कमांडर एसके कौल की अगुवाई में एक और हमला हुआ और इस बार बमबारी के साथ ही गोलियां भी चलाई गईं. आपको बता दें कि इस हमले के बाद गवर्नर मलिक ने इस्तीफा दे दिया और उनके इस्तीफे के साथ ही पाकिस्तान की आखिरी सरकार का भी अंत हो गया और भारत के इस जोरदार हमले ने पाकिस्तान को झुकने पर मजबूर कर दिया और आखिरकार 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के 93 हजार सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और बांग्लादेश के रूप में एक नए देश के उदय को नया आयाम मिल गया..

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