किडनैप, रेप, धर्मान्तरण, जबरन निकाह.., UN ने बताया पाकिस्तान में किस हाल में हैं गैर-मुस्लिम ?

जेनेवा: संयुक्त राष्ट्र (UN) के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने 1947 में भारत से अलग होकर इस्लामी मुल्क बने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता प्रकट की है। UN के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि पाकिस्तान में अपहरण, जबरन निकाह और लड़कियों के जबरन धर्मांतरण में तेजी से इजाफा हो रहा है। इसे रोकने के लिए फ़ौरन कड़े कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। UN के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सोमवार (16 जनवरी) को कहा है कि पाकिस्तान को अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे अपराधों को रोकने के लिए बिना किसी भेदभाव के कार्रवाई करना चाहिए।

 

इसके साथ ही उन्होंने घरेलू कानून और अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार सिद्धांतों के हिसाब से इस प्रकार की घटनाओं को रोकने और इसकी जाँच करने के लिए फ़ौरन कड़े कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इसमें शामिल दोषियों को पूरी तरह से जवाबदेह ठहराया जाए। UN के मानवाधिकार अधिकारियों ने यह भी कहा है कि, 'हमें यह सुनकर बेहद दुख हुआ कि 13 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को उनके घरों से किडनैप किया जा रहा है। इसके बाद तस्करी करके इन लड़कियों को घरों से दूर स्थानों पर भेज दिया जा रहा है। दोगुनी उम्र के पुरुषों से निकाह करने और इस्लाम कबूल करने के लिए उन्हें विवश किया जा रहा है। यह सब अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन है।'

 

UN के विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि, 'हम बेहद चिन्तित हैं कि इस प्रकार के विवाह और धर्मांतरण लड़कियों या उनके परिजनों को हिंसा की धमकियां देकर करवाए जा रहे हैं।' इन विशेषज्ञों ने पाकिस्तान में जबरन धर्मांतरण और अल्पसंख्यक पीड़ित परिवारों को इंसाफ न मिल पाने को लेकर भी निराशा जाहिर की है। विशेषज्ञों ने पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम नाबालिग लड़कियों के अपहरण और जबरन धर्मांतरण में वहाँ की अदालतों और सुरक्षा बलों की सांठगांठ पर भी सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा है कि, 'पीड़ित परिवार के सदस्यों का कहना है कि पीड़ितों की शिकायतों को पुलिस शायद ही कभी गम्भीरता से लेती है। कई दफा पुलिस शिकायत दर्ज करने से भी इनकार कर देती है। यही नहीं लड़कियों के किडनैप और जबरन निकाह को ‘लव मैरिज’ का नाम देकर उचित भी ठहरा दिया जाता है।'

विशेषज्ञों ने आगे बताया कि, 'किडनैप करने वाले लोग पीड़ितों को फर्जी दस्तावेजों में दस्तखत करने के लिए विवश करते हैं। इन दस्तावेजों में विवाह करने के लिए कानूनी तौर पर उम्र के साथ ही अपनी मर्जी से शादी करने की बात लिखी होती है। इसके बाद पुलिस इन दस्तावेजों को यह दिखाने के लिए सबूत के रूप में पेश करती है कि कोई भी अपराध नहीं हुआ है।' UN के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि, 'पाकिस्तानी अधिकारियों को जबरन धर्मांतरण, बाल विवाह, अपहरण और तस्करी पर रोक लगाने वाले कानून को सख्ती से लागू करना चाहिए। इससे, गुलामी और मानव तस्करी से निपटने में मदद मिलेगी। साथ ही, महिलाओं व बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा। ऐसा करने से अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार के सिद्धांतों का पालन हो सकेगा।'

बता दें कि पाकिस्तान में आए दिन अल्पसंख्यक (सिख, हिन्दू, जैन, ईसाई) लड़कियों के अपहरण और बलात्कार के मामले सामने आते रहते हैं। कुछ ऐसे भी मामले सामने आए जिनमें, 13-14 साल की लड़कियों को उनके घर से ही उठा ले जाया गया और फिर जबरन इन्हे मुस्लिम बनाकर किसी अधेड़ व्यक्ति से उनका निकाह करवा दिया गया। ऐसे मामलों में, मौलवियों से लेकर पुलिस प्रशासन व कोर्ट तक की मिलीभगत होती है। कई बार ये मौलवी खुद कह चुके हैं कि, अल्पसंख्यक हिन्दुओं का धर्मांतरण कर उन्हें मुस्लिम बनाना ही उनका काम है, और उनके पूर्वजों ने भी यही किया है। बता दें कि ये सोच केवल मालवीयों की ही नहीं, पाकिस्तान के कई सेलेब्रिटीज़ की भी है। हाल ही में पाक के पूर्व क्रिकेटर सईद अनवर का एक बयान सामने आया था, जिसमे वे अफ्रीकी पूर्व क्रिकेटर हाशिम अमला की इसलिए तारीफ कर रहे थे, क्योंकि अमला ने एक पूरे हिन्दू परिवार को मुसलमान बना दिया था। ऐसे हालातों में पाकिस्तान में गैर- मुस्लिमों का जीवन मुश्किल होता जा रहा है।

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