इस खतरनाक पौधे को छूते ही होने लगती है आत्महत्या करने की इच्छा

कुछ वर्ष पहले साइंटिस्ट मरिना हर्ले ऑस्ट्रेलियाई वर्षा वनों पर अध्ययन कर रही थीं। वैज्ञानिक होने के नाते वे जानती थीं कि जंगलों में कई संकट होते हैं। यहां तक कि पेड़-पौधे भी जहरीले हो सकते हैं। इससे बचने के लिए उन्होंने हाथों में वेल्डिंग ग्लव्स एवं बॉडी सूट पहना हुआ था। अलग लगने वाले तमाम पेड़-पौधों के बीच वे एक नए पौधे के संपर्क में आईं। वेल्डिंग ग्लव्स पहने हुए ही उन्होंने इसका अध्ययन करना चाहा, मगर ये प्रयास भारी पड़ गया। हर्ले दर्द से बेहाल चिकित्सालय पहुंची तो उनका सारा शरीर लाल पड़ चुका था। वे जलन से चीख रही थीं। ये जिम्पई-जिम्पई का प्रभाव था, जिसे ठीक करने के लिए उन्हें लंबे वक़्त तक हॉस्पिटल में स्टेरॉयड लेकर रहना पड़ा। बाद में अपने एक इंटरव्यू में साइंटिस्ट ने बताया- ये दर्द वैसा ही था, जैसे किसी को बिजली का झटका देते हुए ऊपर से एसिड उड़ेल दिया जाए। 

क्वींसलैंड में रेनफॉरेस्ट पर काम करने वालों, या लकड़ियां काटने वालों के लिए जिम्पई को मौत का दूसरा नाम ही समझिए। पौधे की रिपोर्ट के पश्चात् से जंगलों में जाने वाले अपने साथ रेस्पिरेटर, मेटल ग्लव्स और एंटीहिस्टामाइन टैबलेट (एलर्जी और दर्द खत्म करने वाला) लेकर जाने लगे। वैसे इस पौधे को सबसे पहले वर्ष 1866 में रिपोर्ट किया गया था। इस के चलते जंगलों से गुजर रहे कई जानवर, विशेष तौर पर घोड़ों की भयंकर दर्द से मौत होने लगी। तहकीकात में पता लगा कि सब एक ही रास्ते से गुजर रहे थे और एक जैसे पौधों के संपर्क में आए थे। 

दूसरे विश्व युद्ध के चलते कई आर्मी अधिकारी भी इसका शिकार हुए और कइयों ने दर्द से बेहाल स्वयं को गोली मार ली। जो बाकी रहे, वे वर्षों तक दर्द की शिकायत करते रहे। इसके बाद से ही इसपर अधिक ध्यान गया तथा इसे सुसाइड प्लांट कहा जाने लगा। बाद में क्वींसलैंड पार्क्स एंड वाइल्डलाइफ सर्विस ने जंगल में जाने-आने वालों के लिए एक मार्गदर्शिका निकाली जिससे वे खतरे से दूर रह सकें। इसका बायोलॉजिकल नाम है, डेंड्रोक्नाइड मोरोइड्स, जो ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी रेनफॉरेस्ट में मिलता है। जिम्पई-जिम्पई इसका कॉमन नेम है, मगर इसे कई और नामों से भी जाना जाता है, जैसे सुसाइड प्लांट, जिम्पई स्टिंगर, स्टिंगिंग ब्रश और मूनलाइटर। ऑस्ट्रेलिया के अतिरिक्त ये मोलक्कस और इंडोनेशिया में भी मिलता है। दिखने में ये बिल्कुल सामान्य पौधे जैसा है, जिसकी पत्तियां हार्ट के आकार की होती हैं तथा पौधे की ऊंचाई 3 से 15 फीट तक हो सकती है। रोएं की भांति बारीक लगने वाले कांटों से भरे इस पौधे में न्यूरोटॉक्सिन जहर होता है, जो कांटों के माध्यम से शरीर के अंदर पहुंच जाता है। यहां समझ लें कि न्यूरोटॉक्सिन वही जहर है, जो सीधे सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर प्रभाव डालता है। इससे मौत भी हो सकती है। कांटा लगने के तकरीबन आधे घंटे बाद दर्द की तीव्रता बढ़ने लगती है जो निरंतर बढ़ती ही जाती है अगर जल्दी उपचार न मिले। 

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