किसने बनाया था सबसे पहले पार्थिव शिवलिंग?, जानिए यहाँ इसका महत्व

हिंदू धर्म में सावन का महीना बहुत अहम माना जाता है। इस महीने को एक तरह से त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। जी हाँ और इस महीने में भोलेनाथ के भक्त उनकी भक्ति में डूबे रहते हैं। आप सभी को बता दें कि सावन मास भगवान भोलेनाथ को अति प्रिय है और इसी वजह से भोलेनाथ के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए सावन के महीने में पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ उनकी आराधना करते हैं। कहा जाता है सावन के माह में पार्थिव शिवलिंग (Parthiv Shivling) बनाकर पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व है। वहीं शिव महापुराण में बताया गया है कि सावन के महीने में पार्थिव शिवलिंग का पूजन करने से भय नाश होता है। इसी के साथ ही धन-धान्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है। अब हम आपको बताते हैं पार्थिव शिवलिंग का महत्व।

किसने बनाया सबसे पहले पार्थिव शिवलिंग?- जी दरअसल हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, सावन के महीने में पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा करना बहुत लाभकारी माना जाता है। कहते हैं इसकी शुरुआत कलयुग के प्रारंभ में कुष्मांड ऋषि के पुत्र मंडप ने की थी। उन्होंने पूरे सावन के महीने में पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा करना शुरू किया। तब से लगातार भोलेनाथ के भक्त सावन के माह में पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा करते आ रहे हैं। वहीं धर्म शास्त्रों के मुताबिक शिवलिंग की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। इसी के साथ धर्म शास्त्रों में भगवान शिव को कल्याणकारी देवता के रूप में पूजा जाता है। जी दरअसल ऐसा माना गया है कि पार्थिव शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजा-अर्चना करने से हर प्रकार की समस्या खत्म होती है।

इसी के साथ शिव पुराण के अनुसार पार्थिव शिवलिंग के पूजन से सभी दुखों को दूर किया जा सकता है। साथ ही व्यक्ति की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। कहा जाता है धर्म शास्त्रों के अनुसार पार्थिव शिवलिंग बनाने के लिए किसी पवित्र नदी या तालाब की मिट्टी का इस्तेमाल करना चाहिए और इस मिट्टी को चंदन और फूलों से पूजा करके इसमें दूध मिलाकर शिव मंत्र बोलते हुए शिवलिंग बनाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। ध्यान रहे इस शिवलिंग को बनाते समय व्यक्ति का मुंह हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर ही रहना चाहिए।

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