नदियों में फैली गंदगी पर से कोरोना ने उठाया पर्दा, कौन है प्रदुषण का असली जिम्मेदार

लॉकडाउन और कोरोना संकट के बीच केंद्रीय व राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण विभागों के तमाम प्रयासों के बावजूद उद्योगों से निकलने वाले तरल कचरे की समस्या ऐसी है जो नदियों में तो दिखती है लेकिन पैदा कहां से हो रही है, इस पर जानते हुए भी जिम्मेदार विभाग मौन रहते हैं. कोरोना महामारी के संकट ने यह सिद्ध कर दिया है कि कहीं न कहीं उद्योग व उन पर निगरानी करने वाला तंत्र अपना कार्य ईमानदारी से नहीं कर पा रहा है.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि वर्तमान में लॉकडाउन के चलते नदियों के पानी में जो सुधार दिख रहा है उससे उद्योगों व प्रदूषण नियंत्रण विभाग की कलई खुल गई है. ऐसा नहीं है कि नदियों में सौ प्रतिशत बदलाव दिख रहा है लेकिन 20 से 30 प्रतिशत पानी की शुद्धता अवश्य हुई है. इस शुद्धता का मानक वैज्ञानिक दृष्टि से और भी अधिक हो सकता है लेकिन इसकी प्रमाणिकता इस समय नदियों के पानी का परीक्षण करने से ही सिद्ध होगी क्योंकि उद्योगों से जो तरल कचरा विभिन्न नालों के माध्यम से सीधे नदियों में आता है उसमें कीटनाशकों व रसायनों के आने की आशंका रहती है जोकि इस समय पूर्णत: बंद है. ऐसे में पूरी संभावना है कि नदियों के पानी की गुणवत्ता वैज्ञानिक दृष्टि से भी जरूर बेहतर हुई होगी.

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वर्तमान ​परिस्थिति में गंगा-यमुना जैसी नदियों में जिनमें की अपना स्वत: बहाव है, उनमें असर अधिक दिख रहा है, जबकि हिंडन-काली जैसी सैंकड़ों बरसाती नदियों का पानी आज भी काला ही है, क्योंकि उनमें उद्योगों का तरल कचरा तो आना बंद हुआ है लेकिन कस्बों-शहरों का सीवर लगातार बह रहा है. इन नदियों में अपना पानी नहीं है इसीलिए सीवर को बहाकर ले जाने की गंगा जैसी क्षमता इन नदियों में नहीं है. नदियों के प्रदूषण में सीवर के तरल कचरे की भूमिका 70 से 80 प्रतिशत होती है जबकि उद्योगों के कचरे की भूमिका 20 से 30 प्रतिशत, लेकिन यह उद्योगों का तरल कचरा अपने रासायनिक गुणों के कारण अधिक खतरनाक होता है.

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