अन्दाज-ए-तूंफा पर बेहतरीन शायरियां

एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ “ज़िगर”, एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं.

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तूफ़ान से लड़ने का सलीक़ा है ज़रूरी, हम डूबने वालों की हिमायत नहीं करते !!

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उस मौज की टक्कर से साहिल भी लरजता है, कुछ रोज जो तूफ़ान के आगोश मैं पल जाये !!

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बख़्श दे मुर्दा-ए-दिल को ग़म-ए-बे-दाद ‘फ़ना’, सीन-ए-संग में तूफ़ान-ए-शरर पैदा कर~फ़ना निज़ामी.

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वैसे तो एक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए, ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता.!!

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साहिल के सुकूं से किसे इन्कार है लेकिन, तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है.!!

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जाम में तूफ़ान उठते हैं तवाज़ो के लिए, मैकदे में एक पुराना बाद’अ-ख़्वार आने को है !! –रहबर.

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दिल में तूंफा आँखों में दरिया लिए बैठे है, शहरे हवादिस में उम्मीदें दुनिया लिए बैठे हैं.

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फूलों की आरज़ूं में मिली हैं खाक हमें, अंधेरे में क्या दीप जले जब घेर ले तूंफा हमें.

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मुसाफिर, राह के तूंफा मुझे होने नही देते, मगर ये हौसले मेरी भी जिद खोने नही देते.

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मैँ कतरा हो के भी तूंफा से जंग लेता हूँ, मुझे बचाना समुंदर की जिम्मेदारी है.

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मोहब्बत को समझना है तो प्यारे खुद मोहब्बत कर, किनारे से कभी अन्दाज-ए-तूंफा नहीं होता. ***

कोई कश्ती ना मिली उसे आज… तूंफा समंदर से बहुत उदास गया.

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कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, तूफ़ान से लडे बिना कश्ती पार नही होती.

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