इस गुजराती नाटक में नजर आ चुके है PM मोदी, देखकर नहीं होगा यकीन

नई दिल्ली: भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी का 17 सितंबर को जन्मदिन है। प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर दिल्ली भाजपा 17 सितंबर से लेकर 2 अक्टूबर तक 'सेवा पखवाड़े' मनाएगी। वैसे तो पीएम मोदी की जिंदगी खुली किताब की भांति है। किन्तु कुछ ऐसी बातें भी हैं जिन्हें लोग कम जानते हैं। ये बहुत कम ही लोग जानते हैं कि स्कूल के चलते नरेंद्र मोदी को अभिनय और नाटक में बहुत रुचि थी। अभिनय और रंगमंच के प्रति उनके प्रेम की रुचि के बारे में उनके जीवन पर लिखी गई पुस्तक "The Man of the Moment: Narendra Modi" में जिक्र है। ये किताब वर्ष 2013 में एमवी कामथ और कालिंदी Randeri ने लिखी थी।

बता दें, ये पुस्तक उस समय लिखी गई थी जब वह भारत के पीएम नहीं बने थे, किन्तु देश के बेहतरीन राजनीतिक नेता के तौर पर उभर रहे थे। वहीं मोदी ने स्वयं अपनी पुस्तक "Exam Warriors" में बताया कि उन्हें अभिनय और नाटक/ड्रामा से कितना प्यार है। मोदी को लगा कि वह डायलॉग की डिलीवरी परफेक्ट तरीके से कर रहे हैं। मगर वह चाहते थे कि निर्देशक भी उनके बारे में यहीं बोले। अगले दिन, मोदी ने डायरेक्टर से कहा कि वह मेरी जगह आए तथा मुझे बताए कि मैं कहां गलत कर रहा हूं। कुछ ही सेकंड में, मुझे एहसास हुआ कि स्वयं को बेहतर बनाने में मैं कहां गलत हो रहा था। आपको फिर से बता दें, ये सभी बातें मोदी ने पुस्तक "Exam Warriors" में लिखी है।

बता दें, मोदी 13-14 वर्ष के थे जब उन्होंने वडनगर में अपने स्कूल के लिए फंड जमा करने के लिए नाटक किया था। स्कूल की कंपाउंड की दीवार कई स्थानों पर टूट गई थी तथा विद्यालय के पास इसकी मरम्मत के लिए फंड नहीं था। तत्पश्चात, सभी बच्चों ने मिलकर नाटक करने के बारे में सोचा। फिर मोदी और उनके दोस्तों की टोली ने फैसला कर लिया था कि वह अपने स्कूले के रूपये जुटाएंगे तथा नाटक करेंगे। ये नाटक मोदी ने लिखा था। जिसका उन्होंने निर्देशन भी किया तथा नाटक में अभिनय भी किया। मोदी का ये नाटक गुजराती में था। जिसका नाम था 'पीलू फूल'। इसका शाब्दिक अर्थ है पीले फूल। नाटक का विषय अस्पृश्यता एक सदियों पुरानी प्रथा थी। बता दें, अस्पृश्यता की परम्परा को अनुच्छेद 17 के अंतर्गत एक दंडनीय अपराध घोषित कर किया गया है। अस्पृश्यता को अपराध घोषित करने का पहला कानून 1955 में संसद द्वारा पारित किया गया था, मगर जब यह नाटक लागू हुआ (1963-64), तब भी समाज में अस्पृश्यता गहरी जड़ थी।

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