देश के सभी लोगों के लिए एक हो तलाक का कानून, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल

नई दिल्ली: देश के सभी नागरिकों के लिए 'तलाक का समान आधार' लागू किए जाने की मांग को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में एक याचिका दाखिल हुई है। तलाक के लिए कानून में समानता को संविधान की भावना और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप बताया गया है। भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की तरफ से दाखिल की गई याचिका में केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि तलाक कानूनों में विसंगतियों को दूर करने के लिए कदम उठाए जाएं और तमाम नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू किया जाए। 

याचिका में कहा गया है कि उक्त क़ानूओं में धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर कोई भेदभाव ना हो। याचिका में कहा गया है, ''अदालत की तरफ से यह घोषित किया जा सकता है कि तलाक के भेदभावपूर्ण आधार आर्टिकल 14,15, 21 का उल्लंघन हैं और सभी नागरिकों के लिए समान आधार के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जा सकते हैं।'' याचिका में कहा गया है कि विकल्प के तौर पर अदालत लॉ कमिशन को तलाक कानूनों की जांच और आर्टिकल 14,15,21,44 की भावना और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप तीन महीने के अंदर समान कानून की अनुशंसा करने को कह सकता है। 

याचिका में कहा गया है कि हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन समाज के लोग हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत तलाक कि अर्जी लगाते हैं। मुस्लिम, ईसाई और पारसी पर्सनल लॉ बोर्ड के अनुसार चलते हैं। अलग-अलग धर्मों के जोड़े स्पेशल मैरिज एक्ट 1956 के अंतर्गत तलाक मांगते हैं। अगर दोनों में से एक पार्टनर विदेशी नागरिक है तो वे फॉरेन मैरिज एक्ट 1969 के तहत तलाक का फैसला किया जाता हैं। इसलिए तलाक का आधार ना तो लैंगिक रूप से तटस्थ है और ना ही धार्मिक रूप से, अतः अदालत इस बारे में विचार करे।

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