परेश रावल को समर्पित शरियाँ

मुझको मालूम नहीं…. हुस़्न की तारीफ, मेरी नज़रों में हसीन ‘वो’ है, जो तुम जैसा हो, ।

 

अब हम समझे तेरे चेहरे पे तिल का मतलब, हुस्न की दौलत पे दरबान बिठा रखा है

 

तेरे हुस्न पर तारीफ भरी किताब लिख देता……. काश के तेरी वफ़ा तेरे हुस्न के बराबर होती…

 

तेरे …..हुस्न की तपिश….कहीं…जला ना दे मुझे…….!!! . तू कर….महोब्बत मुझसे….ज़रा….आहिस्ता आहिस्ता..!!!

 

ये आईने ना दे सकेंगे तुझे तेरे हुस्न की खबर, कभी मेरी आँखों से आकर पूछो के कितनी हसीन हों तुम…!!

 

शायद तुझे खबर नहीं ए शम्मे-आरजू, परवाने तेरे हुस्न पे कुरबान गये है….!!

 

मिलावट है तेरे हुस्न में “इत्र”और “शराब” की,….. तभी मैं थोड़ा महका हूं;…..थोड़ा सा बहका हूं…

 

तेरे हुस्न को परदे की ज़रुरत ही क्या है,, कौन होश में रहता है तुझे देखने के बाद…

 

तेरे हुस्न का दीवाना तो हर कोई होगा लेकिन मेरे जैसी दीवानगी हर किसी में नहीं होगी।

 

ये तेरा हुस्न औ कमबख्त अदायें तेरी कौन ना मर जाय,अब देख कर तुम्हें.

 

तेरा हुस्न बयां करना नहीं मकसद था मेरा ! ज़िद कागजों ने की थी और कलम चल पड़ी !

 

तेरा हुस्न एक जवाब,मेरा इश्क एक सवाल ही सही तेरे मिलने कि ख़ुशी नही,तुझसे दुरी का मलाल ही सही तू न जान हाल इस दिल का,कोई बात नही तू नही जिंदगी मे तो तेरा ख़याल ही सही.

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