रमजान के रोजे है कैंसर की दवाई
रमजान के रोजे है कैंसर की दवाई
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जापान के नोबेल चिकित्सा पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक योशिनोरी ओहसुमी ने हाल ही में अपनी एक शोध में दावा किया है कि कैंसर से लड़ने के लिए रमजान के रोजे सहायक होते है, वैज्ञानिक ने अपनी इस रिसर्ज में वैज्ञानिक तर्क देकर इस बात की पुष्टि की है. योशिनोरी ओहसुमी ने अपनी रिसर्ज में उन कोशिकाओं की खोज की है जो शरीर से विषैले तत्वों को कम कर उनकी मरम्मत काम करते है. 

दरअसल 'ऑटोफेजी' शरीर में एक किस्म का रिसायकलिंग प्रोग्राम है, यह शरीर के लिए बेहद जरूरी प्रक्रिया है. ऑटोफेजी की प्रक्रिया में शरीर को कैंसर वायरस सहित विभिन्न प्रकार के बेक्टेरिया और वायरस से लड़ने में मदद मिलती है और साथ ही शरीर से सभी प्रकार के वायरस को रीसायकल करने में मदद मिलती है.

जापान के इस महान वैज्ञानिक योशिनोरी ओहसुमी ने जब इस शोध को लोगों के सामने प्रेजेंट किया तो किसी ने उनसे पूछ ही लिया कि, कैंसर से लड़ने के लिए  'ऑटोफेजी' के लिए क्या सही समय है और इससे कैसे लड़ा जा सकता है. इस बात के जवाब में उन्होंने कहा कि 'इससे लड़ने के लिए आपके शरीर को साल में एक बार कम से कम 25 दिन में 14 घंटे तक भूखे रहने की जरूरत होती है, और पुरे विश्व में साल में इस तरह भूखे सिर्फ मुस्लिम ही रखते है, जो रमजान में रोजे रखते है, इस प्रकार इस बीमारी से लड़ने के लिए रोजे भी सहायक होते है. वैज्ञानिक ने इस बारे में कई तर्क दिए है.

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