मणिपुर हिंसा में 'NGO' ही असली खलनायक ! लाशों पर कैसे रोटी सेंक रहे गैर-सरकारी संगठन ? सुप्रीम कोर्ट में पूर्व चीफ जस्टिस की हैरतअंगेज़ रिपोर्ट

इम्फाल: पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में भड़की हिंसा को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाई गई कमिटी ने राज्य में तनाव बढ़ाने के लिए NGO को जिम्मेदार ठहराया है। मणिपुर में फील्ड विजिट करने और जमीन पर जाकर तमाम तथ्यों पर गौर करने के बाद जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की अध्यक्षता वाले पैनल ने कहा है कि NGO लोगों को शवगृह से उनके परिवार वालों का शव लेने तक से रोक रहे हैं। पैनल ने कहा कि इंफाल के शवगृहों में 88 ऐसे शव हैं, जिन्हें परिजन लेने के लिए तैयार नहीं हैं और उनपर सिविल सोसाइटी ऑर्गनाइजेशन्स (CSO/NGO) का दबाव है। वे लोगों को सरकार से मिलने वाली मदद राशि लेने से भी रोक दे रहे हैं। लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करना चाहते हैं पर डर के कारण वे शव भी नहीं ले पा रहे हैं। 

 

देश की सबसे बड़ी अदालत में पूर्व चीफ जस्टिस द्वारा फाइल की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि ये NGO मृतकों के परिजनों को भड़काकर उन्हें शासन-प्रशासन के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं और कई मांगें करवा रहे हैं। पूर्व जस्टिस के नेतृत्व वाली कमिटी ने शीर्ष अदालत को बताया  कि, कुछ ऐसे तत्व हैं जो कि चाहते हैं कि राज्य में तनाव बना रहे और वे शांति स्थापित करने में बाधक बन रहे हैं। इसलिए जो कुछ याचिकाकर्ता NGO हैं, वे सुप्रीम कोर्ट के सामने सही तथ्य नहीं रख रहे हैं और अदालत को गुमराह कर रहे हैं। 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने बताया है कि राज्य सरकार ने मृतकों के शवों के अंतिम संस्कार के लिए 9 जगहें तय की थीं। मृतकों के परिजनों को इन 9 स्थानों में से किसी भी जगह अंतिम संस्कार करने की आज़ादी दी गई थी। लेकिन, कई NGO ने सामूहिक अंतिम संस्कार का विरोध किया और एक सरकारी रेशम उत्पादन फार्म में अवैध रूप से सामूहिक दफ़नाने का प्रयास किया, जिसके परिणामस्वरूप हजारों लोगों ने साइट पर मार्च किया, और कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हो गई। इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से ही कार्यक्रम स्थगित किया गया। इस कारण मणिपुर में तनाव और बढ़ गया, जो जल्दी खत्म नहीं हो सका।  

पूर्व चीफ जस्टिस ने अपनी रिपोर्ट के जरिए सुप्रीम कोर्ट को आगे बताया है कि एक NGO ने डिप्टी कमिश्नर चरुचांदपुर के कार्यालय के एंट्री गेट पर 50 शव रख दिए गए, ये उन लोगों को भी दुखी कर देने वाला था, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल रिपोर्ट के अनुसार, वे लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करना चाहते हैं और शान्ति चाहते हैं, लेकिन कुछ NGO और अन्य संगठन हैं, जो इस आग को भड़काए रखना चाहते हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि, यह राज्य सरकार के उन अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए बेहद पीड़ादायक था, जो दिन रात मेहनत करके शांति बहाल करने की कोशिशों में जुटे थे। इस तरह से ताबूतों के प्रदर्शन के बाद तनाव और अधिक बढ़ गया था।

कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट से NGO और CSO को निर्देश देने की मांग की है और कहा है कि वे लोगों को समझाएं कि वे सहायता राशि ले लें और अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करें। यदि समय रहते वे शवों को नहीं लेते हैं, तो अधिक समय होने पर राज्य सरकार की तरफ से उनका अंतिम संस्कार करवा दिया जाएगा। 

क्या है मणिपुर में हिंसा का मूल कारण ?

बता दें कि, मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जो कि पूरे मणिपुर का लगभग 10 फीसद क्षेत्र है। वहीं,  जबकि आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी शामिल हैं, की आबादी 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं। मणिपुर का 90 फीसद हिस्सा पहाड़ी है, जिसमे केवल कुकी-नागा जैसे आदिवासियों (ST) को ही रहने और संपत्ति खरीदने की अनुमति है, ऐसे में मेइती समुदाय के लोग महज 10 फीसद इलाके में रहने को मजबूर हैं। उन्होंने ST का दर्जा माँगा था, जिसे हाई कोर्ट ने मंजूरी भी दे दी थी, लेकिन इससे कुकी समुदाय भड़क उठा और विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। यही हिंसा की जड़ रही।

 

बताया जाता है कि, कुकी समुदाय के अधिकतर लोग धर्मान्तरित होकर ईसाई बन चुके हैं और वे घाटी पर अफीम की खेती करते हैं, इसलिए वे घाटी में अपना एकाधिकार रखना चाहते हैं और किसी को आने नहीं देना चाहते। विदेशी फंडिंग और मिशनरियों के इशारे पर चलने वाले अधिकतर NGO इन्ही कुकी-नागा लोगों को भड़का रहे हैं। इन कुकी समुदाय को खालिस्तानियों का भी साथ मिल रहा है, कुकी समुदाय का एक नेता कनाडा जाकर खालिस्तानी आतंकियों से मिल भी चुका है, जहाँ से उन्हें फंडिंग और हथियार मिले थे। वहीं, म्यांमार और चीन भी कुकी लोगों को मेइती से लड़ने के लिए हथियार दे रहे हैं।

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