मीडिया, नेता-अभिनेता..! दिल्ली दंगों के आरोपी उमर खालिद को बचाने में सब लगे थे, कोर्ट में दिखाई गई व्हाट्सएप चैट

नई दिल्ली: 10 अप्रैल को दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट में हिंदू विरोधी दिल्ली दंगों के आरोपी उमर खालिद की जमानत पर सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कहा कि खालिद के पक्ष में न्यायपालिका को प्रभावित करने के लिए मीडिया घरानों, कार्यकर्ताओं और गैर सरकारी संगठनों (NGO) द्वारा मीडिया और सोशल मीडिया पर झूठी कहानी गढ़ी जा रही है। कल, अभियोजक ने स्पष्ट रूप से बताया कि जब खालिद जेल में नहीं था, तो वह एक कहानी स्थापित करने के लिए मीडिया और सोशल मीडिया का उपयोग कर रहा था। वह सोशल मीडिया पर पोस्ट करता था और अपने प्रभावशाली संपर्कों का उपयोग करके कहानी सेट करता था, खासकर जब दिल्ली दंगों के आरोपियों की जमानत पर सुनवाई होती थी।

 

9 अप्रैल को सुनवाई के दौरान, विशेष लोक अभियोजक (SPP) अमित प्रसाद ने उमर खालिद और स्वरा भास्कर, सुशांत सिंह, ऑल्टन्यूज़, योगेन्द्र यादव, संजुक्ता बसु, पूजा भट्ट और अन्य जैसे कई प्रभावशाली व्यक्तियों के बीच व्हाट्सएप चैट का खुलासा किया, ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि दिल्ली दंगों का आरोपी और ये सब मिलकर, कैसे न्यायपालिका को अपने पक्ष में प्रभावित करने के लिए अपने पक्ष में एक झूठी कहानी गढ़ रहे थे। 

 

अमित प्रसाद ने द वायर की अरफा खानम शेरवानी के साथ एसक्यूआर इलियासी के साक्षात्कार का उदाहरण भी दिया था, जहां उन्होंने कई झूठे और भ्रामक बयान दिए थे। विशेष रूप से, साक्षात्कार के दौरान, इलियासी ने उमर खालिद की जमानत की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में 14 स्थगनों का उल्लेख किया, लेकिन आसानी से उस हिस्से को छोड़ दिया कि 14 में से सात स्थगन खालिद द्वारा मांगे गए थे। यह इंटरव्यू अदालत में यह प्रदर्शित करने के लिए चलाया गया था कि न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए किस तरह कहानी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

आज, SPP अमित प्रसाद ने कोर्ट में आगे कहा कि जब उमर खालिद जेल से बाहर था, तो वह अपने पक्ष में कहानी बदलने के लिए प्रभावशाली व्यक्तियों का इस्तेमाल कर रहा था। हालाँकि, अब, जबकि वह जेल में है, उसके मामले में न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए सोशल मीडिया और मीडिया पर अन्य लोगों द्वारा इस कहानी में जहर घोला जा रहा है। अभियोजक ने कोर्ट को बताया कि, (कांग्रेस की करीबी) तीस्ता सीतलवाड, आकार पटेल, एमनेस्टी इंटरनेशनल, अज़हर खान, कौशिक राज और स्वाति चतुर्वेदी जैसे कई नाम लिए जो कहानी स्थापित करने में मदद कर रहे हैं। अभियोजक ने आगे उल्लेख किया कि ये व्यक्ति और संस्थाएं उनके समर्थन में हैशटैग चलाते हैं और मामले की झूठी कहानी पेश करते हैं।

दिल्ली दंगों को क्यों कहा जाता है हिन्दू विरोधी दंगा ?

बता दें कि, 2020 दंगों का मुख्य आरोपी और आम आदमी पार्टी (AAP) का पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन खुद कबूल चुका है कि, उसने हिन्दुओं को सबक सीखाने के लिए यह साजिश रची थी। इस ताहिर हुसैन को बचाने के लिए भी ऑल्टन्यूज़, राणा अय्यूब, संजुक्ता बसु (राहुल गांधी की करीबी) ने सोशल मीडिया पर काफी भ्रम फैलाया था, लेकिन जब कोर्ट में ट्रायल चला, तो ताहिर हुसैन ने खुद कबूल किया कि उसके द्वारा जुटाई गई भीड़ अधिक से अधिक हिन्दुओं को मारना चाहती थी। ताहिर ने कोर्ट में कबूला कि, उसने इलाके के CCTV तुड़वा दिए थे और अपने लोगों को लाठी-डंडों और हथियारों को इकठ्ठा करने के लिए कहा था। जबकि, दूसरी तरफ हिन्दुओं को यह पता ही नहीं था, कि उन पर हमला करने के लिए कई दिनों से तैयारी चल रही है। किसी भी अनहोनी की आशंका से बेफिक्र हिन्दुओं पर जब हमला हुआ, तो वे खुद को बचा भी न सके। कोर्ट ने यह भी माना है कि सबूतों से यह पता चला है कि तमाम आरोपित हिंदुओं को निशाना बनाने, उन्हें मारने और संपत्तियों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुँचाने में लिप्त थे। हिंदुओं पर अंधाधुंध फायरिंग यह स्पष्ट करती है कि यह भीड़ जानबूझकर हिंदुओं की हत्या चाहती थी। हिंदुओं की दुकानों को आग के हवाले किया जाने लगा, लूटा जाने लगा और पत्थरबाजी चालू हो गई। इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 200 से अधिक घायल हुए थे।  

 

इसी हिन्दू विरोधी दंगे में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के अफसर अंकित शर्मा की भी हत्या की गई थी, उनके शरीर पर चाक़ू के 51 जख्म निशान मिले थे। यानी नफरत इस हद तक थी कि, मौत होने के बाद भी अंकित को लगातार चाक़ू मारे जा रहे थे, उनकी लाश AAP के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन के घर के पास स्थित एक नाले से मिली थी। यहाँ तक कि, ताहिर हुसैन पर आरोप तय करने वाली कोर्ट खुद यह कह चुकी है कि, दंगाई भीड़ का मकसद केवल और केवल हिन्दुओं को मरना और उन्हें नुकसान पहुँचाना था। वहीं, तत्कालीन AAP पार्षद खुद यह कबूल चुका है कि, उनका मकसद हिन्दुओं को सबक सिखाना ही था। 

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