अहिंसा के पुजारी और शांति के दूत थे महाराजा अग्रसेन

आज अग्रकुल प्रवर्तक महाराजा अग्रसेन की जयंती है। आपको बता दें कि वह प्रतापनगर के सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा वल्लभ के पुत्र थे। कहा जाता है वह बचपन से ही मेधावी एवं अपार तेजस्वी थे और वह अपने पिता की आज्ञा से नागराज कुमुट की कन्या 'माधवी' के स्वयंवर में गए थे। उस समय वहां अनेक वीर योद्धा राजा, महाराजा, देवता आदि आए थे लेकिन उनका रुतबा ऊपर पहचान अलग ही थी। सुंदर राजकुमारी माधवी ने उपस्थित जनसमुदाय में से युवराज अग्रसेन के गले में वरमाला डालकर उनकी अपना पति माना था।

इस बात को होता देख देवराज इंद्र ने इसे अपना अपमान समझा था और वे महाराजा अग्रसेन से नाराज हो गए था। ऐसा होने से महाराजा अग्रसेन के राज्य में सूखा पड़ गया और जनता के बीच त्राहि-त्राहि मच गई। उस दौरान प्रजा के कष्ट निवारण के लिए राजा अग्रसेन ने अपने आराध्य देव शिव की उपासना की। कहा जाता है उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने अग्रसेन को वरदान दिया तथा प्रतापगढ़ में सुख-समृद्धि एवं खुशहाली लौटाई। केवल यही नहीं बल्कि धन-संपदा और वैभव के लिए महाराजा अग्रसेन ने महालक्ष्मी की भी आराधना कि और उन्हें प्रसन्न किया।

उसके बाद माता महालक्ष्मीजी ने उनको समस्त सिद्धियां, धन-वैभव प्राप्त करने का आशीर्वाद देते हुए कहा कि 'तप को त्याग कर गृहस्थ जीवन का पालन करो, अपने वंश को आगे बढ़ाओ। तुम्हारा यही वंश कालांतर में तुम्हारे नाम से जाना जाएगा।' आप सभी को हम यह भी बता दें कि महाराजा अग्रसेन एक कर्मयोगी लोकनायक थे इसी के साथ वह संतुलित एवं आदर्श समाजवादी व्यवस्था के निर्माता भी थे। वह गणतंत्र के संस्थापक, समाजवाद के प्रणेता, अहिंसा के पुजारी एवं शांति के दूत थे। इसके अलावा उन्होंने जनता के लिए जो भी किया वह सराहनीय रहा। आज उनकी जयंती पर हम उन्हें शत्‌-शत्‌ नमन करते हैं।

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