लोकतंत्र के प्रहरी जयप्रकाश नारायण

भारत जैसे लोकतंत्रीय देश में आज़ादी के पूर्व से लेकर अब तक कई लोगों ने योगदान दिया, लेकिन लोकतंत्र के सजग प्रहरी के रूप में सम्पूर्ण क्रांति का उद्घोष करने वाले लोक नायक जयप्रकाश नारायण के अवदान को भुलाया नहीं जा सकता. जयप्रकाश नारायण को लोग जेपी के नाम से पुकारते थे.

लोकतंत्र समर्थक जेपी का जन्म 11 अक्टूबर 1903 को बिहार के  सारण जिले के सिताबदियारा गांव में हुआ. इनके पिता का नाम हरशु दयाला और मां का नाम फुलरानी देवी था. देश की आज़ादी की ललक और बाद में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उसकी रक्षा का भाव उनमें कूटकूट कर भरा था. पराधीन भारत में जेल में यातना सहने वाले जयप्रकाश को आजाद भारत में भी जेल की हवा खानी पड़ी.आजादी के बाद जयप्रकाश नारायण आचार्य विनोबा भावे के ‘सर्वोदय आंदोलन‘ से जुड़ गए. बीहड़ों के बागियों का आत्मसमर्पण कराने में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही.

आप को बता दें कि जयप्रकाशनारायण मूल रूप से लोकतांत्रिक समाजवादी थे और व्यक्ति की स्वतंत्रता को सर्वोपरि मानते थे. वे भारत में ऐसी समाज व्यवस्था के समर्थक थे जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, मानसिक प्रतिष्ठा और लोककल्याण के आदर्शों के अनुरूप हो.1974 में सम्पूर्ण क्रांति की शुरुआत की. अपना सपना पूरा करने के लिये जयप्रकाश ने ‘छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की स्थापना कर  अहिंसक रास्ते से भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आंदोलन का नेतृत्व किया.जेपी ने पांच जून, 1975 को पटना के गांधी मैदान में विशाल जनसमूह को संबोधित किया. यहीं उन्हें ‘लोकनायक‘ की उपाधि दी गई.

इसके कुछ दिनों बाद ही दिल्ली के रामलीला मैदान में उनका ऐतिहासिक भाषण हुआ. इसके कुछ दिनों बाद इंदिरा गांधी ने देश में 25 जून 1975 को आपातकाल लगा दिया . सम्पूर्ण क्रांति के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. स्मरण रहे कि दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई जेपी की आम सभा ने पूरे देश को झकझोर दिया. इस सभा में तब एक लाख लोग शामिल हुए थे.

विरोध के चलते आखिर आपातकाल का अँधेरा छँटा और दो साल बाद इंदिरा गाँधी ने 1977 में आपातकाल हटा दिया. जेपी के नेतृत्व में जनता पार्टी का गठन हुआ. मोरारजी देसाई को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया. देश को नेतृत्व देने वाले जेपी की किडनियां खराब हो गई और शेष समय उन्हें डायलिसिस पर गुजारना पड़ा. 8 अक्टूबर 1979 को उनका निधन हो गया और देश ने लोकतंत्र का एक सजग प्रहरी खो दिया. जेपी को मरणोपरांत भारत रत्न से विभूषित किया गया.

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