ज्ञानवापी में शिवलिंग है या फव्वारा ? फिर रह गया सवाल, मुस्लिम पक्ष की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक दी कार्बन डेटिंग

वाराणसी: वाराणसी स्थित विवादित ज्ञानवापी परिसर में जो आकृति मिली वो शिवलिंग है या फव्वारा ? ये सवाल अब फिर कुछ समय के लिए टल गया है। दरअसल, इलाहबाद हाई कोर्ट ने सच्चाई जानने और 'शिवलिंग' की वास्तविक उम्र जानने के लिए जो कार्बन डेटिंग और साइंटिफिक सर्वे करने का आदेश दिया था, उसे पर सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई तक के लिए रोक लगा दी है। मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए कार्बन डेटिंग रोकने की मांग की थी।

जिसके बाद शीर्ष अदालत ने शिवलिंग नुमा आकृति की कार्बन डेटिंग और पूरे परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की बेंच के समक्ष ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति के वकील हुजेफा अहमदी ने कहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपील लंबित रहते हुए आदेश पारित कर दिया है। हुजेफा की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई थी। आज शुक्रवार (19 मई) को याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में संबंधित निर्देशों का क्रियान्वयन अगली सुनवाई तक स्थगित रहेगा।

 बता दें कि, विवादित परिसर पर हिन्दू पक्ष अपना दावा करता रहा है, हिन्दू पक्ष की दलील है कि औरंगज़ेब ने काशी विश्वनाथ का मंदिर तुड़वाकर वहां मस्जिद बनवा दी थी और ये उनके लिए आस्था का बेहद महत्वपूर्ण केंद्र होने के कारण उन्हें सौंपा जाना चाहिए। वहीं, मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध किया था। हिन्दू पक्ष ने कोर्ट का रुख किया, तो अदालत ने सच्चाई का पता लगाने के लिए सर्वे का आदेश दिया, इसका भी मुस्लिम पक्ष ने विरोध किया। हालाँकि, तमाम जद्दोजहद के बाद सर्वे हुआ और ज्ञानवापी के वजूखाने में शिवलिंग नुमा आकृति मिली, तो मुस्लिम पक्ष उसे फव्वारा बताने लगा। अब वो शिवलिंग है या फव्वारा ? यह जानने के लिए जब कार्बन डेटिंग कराई जा रही है, तो मुस्लिम पक्ष उसे रुकवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। इससे यह सवाल उठ रहा है कि, आखिर मुस्लिम पक्ष सच्चाई सामने क्यों नहीं आने देना चाहता ? क्या वो जानता है कि, वो आकृति शिवलिंग ही है, मगर देना नहीं चाहता ? क्योंकि, इतिहासकार इरफ़ान हबीब भी यह स्वीकार कर चुके हैं कि, औरंगज़ेब ने ही काशी, मथुरा के मंदिर तोड़े थे और उसी मलबे से वहीँ मस्जिदें बनवा दी थी। उन्होंने बताया कि इतिहास की तारीख में मंदिर तोड़ने की तारीख तक दर्ज है।  

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