28 जुलाई को मसूरी में होगा हिमालयन कॉन्क्लेव, एक मंच पर होंगे सभी 10 हिमालयी राज्य

देहरादून: प्लेट मूवमेंट और मौसम परिवर्तन के कारण उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्य अब भूकंप, भूस्खलन, अतिवृष्टि जैसी आपदाओं की और ज्यादा मार सहन कर रहे हैं। आपदाओं से निपटने के लिए सभी प्रदेशों के सामने एक सशक्त आपदा प्रबंधन तंत्र को विकसित करने की चुनौती है। 28 जुलाई को मसूरी में आयोजित किए जा रहे हिमालयी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सामने उत्तराखंड ने इसी चुनौती से पार पाने के लिए एक साथ आने का सुझाव पेश करने की तैयारी पूरी कर ली है।

10 वर्ष बाद हिमालयी राज्य एक बार फिर एक साथ एक स्टेज पर आ रहे हैं. इस बार मसूरी में अपनी साझा समस्याओं और केंद्र से सहायता की आस में ये सम्मेलन किया जा रहा है. इस सम्मेलन में प्रमुख रूप से कुछ ऐसे बिंदुओं पर चर्चा की जाएगी, जिससे सभी हिमालय राज्य जूझ रहे हैं. हिमालयी राज्यों पर पर्यावरण के संरक्षण की अहम् जिम्मेदारी है. इसलिए कई बड़ी परियोजनाएं यहां पर्यावरण की वजह से मंजूर नहीं हो पाती. उद्योग भी पहाड़ में अधिक लागत लगने की वजह से विकसित नहीं हो पाते. ऐसे में सभी राज्य इसकी एवज में केंद्र से सहायता चाहते हैं. 

केंद्र भी इन संवेदनशील प्रदेशों की चिंता से पूरी तरह वाकिफ है. इसलिए 15 वें वित्त आयोग ने जब प्रदेशों से चर्चा की तो इस मुद्दे पर सकारात्मक रुख रखते हुए प्रदेशों के वार्षिक बजट का 7.5 फीसद तक अनुदान देने की बात कही. किन्तु हिमालयी राज्य सम्मेलन में केंद्र से अधिक की मांग करने वाले है. हिमालयी राज्य पर्यावरण संरक्षण के लिए संबंधित राज्य के वार्षिक बजट का 15 फीसद ग्रीन बोनस देने की मांग कर रहे हैं.

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