दिनाकरन के बहाने देशद्रोह कानून की चर्चा

एआईएडीएमके के निष्कासित नेता टीटीवी दिनाकरन के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लिया, जो प्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक बदले की कार्रवाई नजर आती है. इसके साथ ही देशद्रोह की धारा के उपयोग पर पुनर्विचार की मांग फिर उठने लगी है.

बता दें कि एआईएडीएमके (अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के निष्कासित नेता टीटीवी दिनाकरन के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा मुख्यमंत्री ई पलानिसामी के एक सहयोगी की शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया. शिकायत के अनुसार इन पर्चों में सरकारी नीतियों की आलोचना कर सरकार गिराने के लिए लोगों को उकसाया गया था.

उल्लेखनीय है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए के तहत देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट अपने कई निर्णयों में इस धारा को लागू करने की प्रवृत्ति को कम कर चुका है. ऐसा इसलिए किया गया है, ताकि सिर्फ उन्हीं मामलों में देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो, जहां वास्तव में हिंसक जरियों से सरकार बदलने की कोशिश की जा रही हो या इरादा व्यक्त किया जा रहा हो. लेकिन लगता है कि पुलिस अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आशय को नहीं समझ पा रहे हैं. यही दिनाकरन के मामले में हुआ.

सच तो यह है कि राजनीतिक लड़ाई में कानून का सहारा नहीं लेना चाहिए और खास तौर से देशद्रोह के कानून का इस्तेमाल तो होना ही नहीं चाहिए, यदि ऐसा होता है, तो फिर इस कानून को खत्म करना ही समझदारी है. क्योंकि कानून के बेजा उपयोग की इज़ाजत तो हमारे देश का कानून भी नहीं देता.

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