कानून के नाम पर अंतहीन मुकदमेबाज़ी की इजाजत नहीं दे सकती अदालत- CJI बोबड़े

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को 7 लोगों की हत्या के प्रकरण में फांसी की सजा पाए सलीम और शबनम की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की। चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि हमारे फैसले का सम्मान किया जाना चहिए, फांसी की सज़ा को स्वीकार किया जाना चाहिए। लेकिन आज कल ऐसा नही हो रहा है। 

शीर्ष अदालत का कहना है कि मौत की सजा का अंत बेहद आवश्यक है और एक निश्चित बंदी की छाप के सामने नहीं होना चाहिए, जैसा कि हाल की घटनाओं से पता चला है कि मौत की सजा खुली है और हर वक़्त पूछताछ की जा सकती है। अदालत ने कहा कि अंतहीन मुकदमेबाजी की इजाजत नहीं दी जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि इस तरह से बहस होगी तो हम किसी मामले में फैसला नही दे पाएंगे, आपको मामले के मेरिट पर बहस करना चाहिए।

याचिकाकर्ता की वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि यदि एक फीसद भी चांस है कि फांसी की सज़ा टालने का तो अदालत को उसपर विचार करना चहिए, हम इस मामले की गंभीरता समझते है और वीभत्स तरीके से क़त्ल किया गया है यह मानते है। लेकिन अदालत को फांसी की सज़ा कम करने पर विचार करना चहिए। इस पर  शीर्ष अदालत ने कहा कि हमे आप पहले का कोई ऐसा फैसला दिखाइए जिसमें जेल के अच्छे आचरण के कारण फांसी की सज़ा बदल दिया गया हो। 

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