आंबेडकर नहीं चाहते थे कि अंग्रेज़ भारत छोड़ें, गांधी को नहीं मानते थे 'महात्मा'

नई दिल्ली: आज देश के संविधान में अहम योगदान देने वाले डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की पुण्यतिथी है। 14 अप्रैल 1891 को जन्मे आंबेडकर ने अपनी पूरी उम्र दलितों के उत्थान के लिए लगा दी थी। लेकिन, आंबेडकर और गांधी जी के बीच संबंध कभी मधुर नहीं रहे। यहाँ तक कि आंबेडकर तो गांधी को महात्मा भी नहीं मानते थे। साथ ही वे अंग्रेजों के भारत छोड़ने से डरे हुए थे। इस कारण उन्होंने गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने से भी साफ इनकार कर दिया था। आंबेडकर नहीं चाहते थे कि देश को एकदम से पूरी आजादी मिले। 

ब्रिटिश हुकूमत में कैबिनेट मंत्री के बराबर थे आंबेडकर:-

दरअसल, 8 अगस्त 1942 को जब बंबई के गोवालिया टैंक मैदान पर हजारों की भीड़ के साथ गांधी जी ने पूरी आजादी मांगने का संकल्प लिया और लोगों को करो या मरो का नारा दिया तो पूरी देश आजादी के स्वप्न को साकार करने जमीन पर उतर जाना चाहता था। मगर, दूसरी ओर भीमराव आंबेडकर आंदोलन के समर्थक नहीं थे। तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत में आंबेडकर वायसराय काउंसिल के सदस्य थे, जो आज के कैबिनेट मंत्री के बराबर दर्जा रखता है। आंबेडकर के आलोचकों का कहना है कि वो अंग्रेजों की वकालत करना अधिक पसंद करते थे।

अंग्रेज़ों के साथ क्यों काम करना चाहते थे आंबेडकर ?

आज़ाद भारत के प्रथम कानून मंत्री आंबेडकर की जीवनी पर मशहूर फ्रेंच राजनीति विज्ञानी क्रिस्तोफ जाफ्रलो ने एक किताब लिखी है। उनकी किताब के अनुसार, आंबेडकर अंग्रेजों के भारत छोड़ने को लेकर भयभीत थे। दरअसल, जब भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था, उसी समय दुनिया दूसरा विश्व युद्ध का दंश भी झेल रही थी। पूरे विश्व ने उस दौरान युद्ध में जापान और जर्मनी की क्रूरता देखी थी। आंबेडकर का मानना था कि  जापानी और नाजियों की फासीवाद सोच अंग्रेजों से कहीं अधिक घातक है। इसलिए यह सब सोचकर आंबेडकर ने अंग्रेजों के साथ मिलकर काम करने का निर्णय लिया था।

ब्रिटिश आर्मी में दलितों को भर्ती करवाते थे आंबेडकर :-

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बाबा साहेब आंबेडकर के पास देश में श्रम विभाग की कमान थी। वायसराय काउंसिल के मेंबर रहने के दौरान आंबेडकर ने निचले तबके के लोगों के लिए कई कानून बनाए। उन्होंने ब्रिटिश आर्मी में दलितों की भर्तियां शुरू करवाई। उनका मानना था कि दलित उत्थान के लिए अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ही अधिक काम किया जा सकता है। वे आजादी के पक्षधर थे मगर, साथ ही यह भी चाहते थे कि देश को धीरे-धीरे आजादी मिले, ताकि जब पूरी आजादी मिल जाए, तो दलित समाज के अन्य वर्गों की तरह सशक्त हों।

अंबाला: नहर में गिरी कार, एक ही परिवार के 4 लोगों की दर्दनाक मौत

अपना ही लिखा संविधान क्यों जला डालना चाहते थे बाबा साहेब ?

'परमवीर' ब्रिगेडियर होशियार सिंह दहिया की पुण्यतिथि आज, 1971 के जंग में दिखाया था अद्भुत शौर्य

Related News