'बुलाती है मगर जाने का नहीं...' यहाँ पढ़िए राहत इंदौरी के 11 बेहतरीन शेर

1 जनवरी 1950 को जन्मे राहत कुरैशी उर्फ़ राहत इंदौरी किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं, उनकी ग़ज़लें, उनके शेर खुद इस असीम शख्सियत के कद की गवाही देते हैं। एक ऐसा शायर, जिसने जिंदगी के हर मौसम के लिए शेर कहे, उनके अल्फ़ाज़ आज विश्व के हर उस कोने में सुनाई देते हैं, जहाँ लोग मोहब्बत की नदी में गोते लगा रहें हैं। आइए आज इस अद्भुत फनकार की पुण्यतिथि पर हम उनकी कुछ बेहतरीन रचनाओं से आपको रूबरू कराते हैं। 

1-बुलाती है मगर जाने का नहीं, ये दुनिया है इधर जाने का नहीं, मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर, मगर हद से गुज़र जाने का नहीं।   

2- बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाय।

3- रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद पागल है अंन्धेरे में निकल पड़ता है।

4- कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं, कभी धुए की तरह परबतों से उड़ते हैं, ये कैंचियाँ हमें उड़ने से ख़ाक रोकेंगी, के हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं...

5- कही अकेले में मिलकर झंझोड़ दूँगा उसे जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का इरादा मैंने किया था की छोड़ दूँगा उसे।

6- ज़ुबाँ तो खोल नज़र तो मिला जवाब तो दे मैं कितनी बार लूटा हूँ मुझे हिसाब तो दे।

7- आँखों में पानी रखो होठों पे चिंगारी रखो जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो।

8-तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो, मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो। 

9- ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था, मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था, मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना, मैं तेरी माँग में सिन्दूर भरने वाला था। 

10-अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है, ये सब धुँआ है, कोई आसमान थोड़ी है, लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है। 

11- न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा। 

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