इस पूजा विधि से करें परमा एकादशी पर पूजा, पूरी होगी हर मनोकामना

सनातन धर्म में एकादशी का खासा महत्व है. कष्ट निवारण के लिए इस दिन को सबसे उत्तम माना जाता है. प्रत्येक माह में दो एकादशी आती है. एक कृष्णपक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में. यानी वर्ष भर मे 24 एकादशी. वहीं अधिकमास की दूसरी एकादशी 12 अगस्त को है. इसे परमा एकादशी कहा जाता है. इस व्रत रखने से दुख, दरिद्रता की समाप्ति होती है.  वही परमा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर भगवान सूर्यदेव को अर्द्य दें. फिर पीला वस्त्र पहनकर प्रभु श्री विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अराधना करें. पीला रंग प्रभु श्री विष्णु को अधिक प्रिय है. उसके बाद व्रत रखकर कथा का श्रावन जरूर करें. इसके बाद द्वादशी को व्रत का पारण करें. वही पूजा का इस आरती के साथ समापन करें... एकादशी की आरती:-  ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता । विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।   तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी । गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।   मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी। शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।   पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है, शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।   नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै। शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।   विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी, पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।   चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली, नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।   शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी, नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।   योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी। देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।   कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए। श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।   अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला। इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।   पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी। रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।   देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया। पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।   परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।। शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।   जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै। जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।

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