जवानी में याद आती है दादी-नानी की कहानी

नई दिल्ली: कभी-कभी हड़बड़ी में लिया गया निर्णय में आपके लिए घातक सिद्ध हो सकता है, इस बात का ज्ञान तो हमेशा से दादी-नानी हमे देती हुई आई है. लेकिन अगर इसी बात को प्रैक्टिकली देखे तो इंसान जब तक खुद ठोकर नहीं खाता उसे तब तक दादी-नानी की वह समझाइश बेमानी लगती है.   वास्तविकता में देखे तो व्यक्ति को ठोकर खाना भी काफी हद तक ज़रूरी भी है, इसके बाद ही व्यक्ति को सही और गलत के बीच फर्क पता चलता है. जब युवा पहली बार अपने घर से बाहर निकलता है तो वह कई तरह के लोगो से मिलता है, और उन पर विश्वास भी कर लेता है, बता दे आपको ऐसा लगभग 80 फीसदी युवाओ में देखने को मिलता है. जो पहली बार अपने घर से बाहर निकलते है.   वही जब दूसरे व्यक्ति द्वारा उनका विश्वास टूटता है तो उस स्थिति में उन्हें वह दादी-नानी की सलाह याद आती है. जिसे वो हमेशा दरकिनारे रखते हुए आए है.

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