इस्तेमाल ही नहीं हुआ पानी, पर वाटर टैक्स 4 हज़ार करोड़

रांची: औद्योगिक इकाई के लिए पानी का समय से पूर्व आवंटन कराना झारखण्ड की कुछ कॉर्पोरेट कंपनियां के गली की हड्डी बन गया है. व्यवहारिक व तकनीकी पेंच के चलते तमाम कंपनियां समय से उत्पादन शुरू नहीं कर सकीं और न ही उन्होंने आवंटित पानी का उपयोग किया लेकिन फिर भी सरकार की अरबों रुपये की कर्जदार बन बैठीं. फ़िलहाल कंपनियां इस मामले को लेकर अदालत में गई है, कंपनियों का कहना है कि सरकार उनपर वसूली के लिए दबाव बना रही है.

जल संसाधन विभाग ने बताया है कि कुल 42 कंपनियों पर वाटर टैक्स के मद में 4196 करोड़ रुपये बकाया हैं, झारखंड सरकार के साथ आपसी सहमति पत्र (एमओयू) करने वाली तमाम कंपनियों ने सबसे पहले जल संसाधन विभाग में पानी के आवंटन के लिए पैरोकारी शुरू की, राज्य में पानी के सीमित स्रोत होने के कारण कंपनियों का पहला फोकस पानी आवंटित कराने पर ही रहा, कंपनियों को विभिन्न जल स्रोतों से पानी का आवंटन कर भी दिया गया. कंपनियों ने उत्पादन शुरू न होने की वजह से पानी का उपयोग नहीं किया लेकिन सरकार का मीटर चल पड़ा और अब वह गले से ऊपर पहुंच चुका है.

जल संसाधन विभाग के साथ कंपनियों के हुए समझौते में यह स्पष्ट कहा गया है कि यदि पहले दो साल पानी का उपयोग नहीं होता है तो कंपनियों से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा, इसके अगले दो साल बाद भी उपयोग न होने पर आवंटित जल का 25 प्रतिशत शुल्क ही वसूला जाएगा, अगले तीन साल बाद यह 50 प्रतिशत तक हो जाएगा और पांचवें साल से सौ प्रतिशत शुल्क लगेगा. 

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