गुलज़ार की इन प्यारभरी शायरियों के जरिए आप भी कीजिये अपने प्यार का इज़हार

वैसे तो प्यार बयां करने का कोई खास दिन नहीं होता है लेकिन अगर बात की जाए वैलेंटाइन्स डे के बारे में तो इस दिन सभी प्रेमी जोड़े अपने प्यार का इज़हार करते हैं. ऐसे में अगर आप गुलज़ार साहब की प्यारभरी शायरी अपने पार्टनर को भेजेंगे तो यक़ीनन आपकी पार्टनर बहुत खुश हो जाएगी.

 

मैं अगर छोड़ न देता, तो मुझे छोड़ दिया होता, उसने इश्क़ में लाज़मी है, हिज्रो- विसाल मगर इक अना भी तो है, चुभ जाती है पहलू बदलने में कभी रात भर पीठ लगाकर भी तो सोया नहीं जाता

बीच आस्मां में था बात करते- करते ही चांद इस तरह बुझा जैसे फूंक से दिया देखो तुम… इतनी लम्बी सांस मत लिया करोथोड़ी देर ज़रा-सा और वहीं रुकतीं तो... सूरज झांक के देख रहा था खिड़की से  एक किरण झुमके पर आकर बैठी थी, और रुख़सार को चूमने वाली थी कि तुम मुंह मोड़कर चल दीं और बेचारी किरण फ़र्श पर गिरके चूर हुईं थोड़ी देर, ज़रा सा और वहीं रूकतीं तो...

कैसी ये मोहर लगा दी तूने... शीशे के पार से चिपका तेरा चेहरा मैंने चूमा तो मेरे चेहरे पे छाप उतर आयी है उसकी, जैसे कि मोहर लगा दी तूने... तेरा चेहरा ही लिये घूमता हूँ, शहर में तबसे लोग मेरा नहीं, एहवाल तेरा पूछते हैं, मुझ से !!

शहतूत की शाख़ पे बैठा कोई  बुनता है रेशम के धागे  लम्हा-लम्हा खोल रहा है  पत्ता-पत्ता बीन रहा है एक-एक सांस बजा कर सुनता है सौदाई  एक-एक सांस को खोल के अपने तन पर लिपटाता जाता है  अपनी ही साँसों का क़ैदी रेशम का यह शायर इक दिन  अपने ही तागों में घुट कर मर जाएगा

मुझसे इक नज़्म का वादा है, मिलेगी मुझको  डूबती नब्ज़ों में, जब दर्द को नींद आने लगे  ज़र्द सा चेहरा लिए चाँद, उफ़क़ पर पहुंचे  दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के क़रीब न अँधेरा, न उजाला हो,  यह न रात, न दिन  ज़िस्म जब ख़त्म हो  और रूह को जब सांस आए मुझसे इक नज़्म का वादा है मिलेगी मुझको

देखो, आहिस्ता चलो और भी आहिस्ता ज़रा  देखना, सोच सँभल कर ज़रा पाँव रखना  ज़ोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं कांच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में  ख़्वाब टूटे न कोई जाग न जाए देखो  जाग जाएगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा

चार तिनके उठा के जंगल से एक बाली अनाज की लेकर चंद कतरे बिलखते अश्कों के चंद फांके बुझे हुए लब पर मुट्ठी भर अपने कब्र की मिटटी मुट्ठी भर आरजुओं का गारा एक तामीर की लिए हसरत तेरा खानाबदोश बेचारा शहर में दर-ब-दर भटकता है तेरा कांधा मिले तो टेकूं! 

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