कोरोना की सबसे बड़ी मार, हैरान कर देगा बेरोजगारी का आंकड़ा

यह बात तो हर कोई जानता है कि छोटे-बड़े हर व्यापार को शुरू करने के लिए पैसे की जरूरत होती है. जब व्यापार चलता है, तो इससे जुड़े लोग पैसा कमाते हैं. चाहे वे कर्मचारी हों या आपूर्तिकर्ता. व्यापार के चलने से सरकार भी पैसा कमाती है. मुनाफे पर आयकर, इसके उत्पाद शुल्क, माल के अलावा सेवा कर और सीमा शुल्क भी कमाती हैं. इस पैसे को देश के कल्याण के लिए खर्च करती है. मगर पिछले कुछ हफ्तों में ये पूरी प्रक्रिया टूट गयी है. लॉकडाउन की वजह से बड़े और छोटे व्यापार, दोनों बंद पड़े हैं. कोविड 19 के फैलाव को रोकने के लिए यह जरूरी भी था, लेकिन अब ऐसी स्थिति आन पड़ी है कि इलाज बीमारी से भी बदतर लग रहा है.

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इस मामले को लेकर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी का डाटा बताता है कि मई 10 को बेरोजगारी की दर करीब 24 फीसद तक पहुंच गयी है. मार्च 15 को यह दर 6.74 फीसद पर थी. कहने का मतलब यह है कि भारत में औसतन हर चौथा कामगार बेरोजगार है. इस बेरोजगारी की सबसे ज्यादा मार अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वालों को झेलनी पड़ रही है. क्रिसिल के एक हालिया नोट में कहा गया है कि भारत के पास 46.5 करोड़ लोगों का कार्यबल हैं. इसमें से लगभग 41.5 करोड़ व्यक्ति अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं, जहां कोई सामाजिक सुरक्षा लाभ उपलब्ध नहीं है.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि पिछले कुछ हफ्ते शहरों में फंसे अनौपचारिक क्षेत्रों में काम कर रहे प्रवासी कामगारों के लिए मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से बहुत कठिन रहे हैं. बड़े शहरों से सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने मूल स्थानों पर जाने वाले प्रवासियों की कई डरावनी दिल-दहला देने वाली कहानियां भी सामने आयी हैं. लॉकडाउन से घरेलू आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस के द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि लगभग 84 फीसद भारतीय परिवारों में लॉकडाउन के बाद आय में कमी आयी है. इसके अलावा, परिवारों में वर्तमान आर्थिक माहौल का सामना करने की सीमित क्षमता है. केवल 66 फीसद परिवारों के पास एक और हफ्ते से अधिक समय तक चलने के संसाधन है. ग्रामीण परिवारों की आय पर ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.

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