क्यों लगते है बालाजी की ठोड़ी पर चन्दन

18 वी शताब्दी में, बालाजी  मंदिर को कुल 12 वर्षों के लिए बंद कर दिया गया था. उस दौरान, एक राजा ने 12 लोगों को मौत की सजा दी और मंदिर की दीवार पर लटका दिया. कहा जाता है कि उस समय वेंकटेश्वर स्वामी प्रकट हुए थे तबसे ये मंदिर फिर से खोल दिया गया . इस मंदिर में एक दीया कई सालों से जल रहा है किसी को नहीं ज्ञात है कि इसे कब जलाया गया था बालाजी की मूर्ति पर पचाई कर्पूर चढ़ाया जाता है जो कर्पूर मिलाकर बनाया जाता है. यदि इसे किसी साधारण पत्थर पर चढाया जाए, तो वह कुछ ही समय में चटक जाता है, लेकिन मूर्ति पर इसका प्रभाव नहीं होता है.

गुरूवार के दिन, स्वामी की मूर्ति को सफेद चंदन से रंग दिया जाता है.जब इस लेप को हटाया जाता है तो मूर्ति पर माता लक्ष्मी के चिन्ह बने रह जाते हैं. मंदिर के पुजारी, पूरे दिन मूर्ति के पुष्पों को पीछे फेंकते रहते हैं और उन्हें नहीं देखते हैं, दरअसल इन फूलों को देखना अच्छा नहीं माना जाता है. मंदिर के दरवाजे कि दायीं ओर एक छड़ी रहती है. माना जाता है इस छड़ का उपयोग भगवान के बाल रूप को मारने के लिए किया गया था. तब उनकी ठोड़ी पर चोट लग गई थी. जिसके कारण बालाजी को चंदन का लेप ठोड़ी पर लगाए जाने की शुरुआत की गई.

सामान्य तौर पर देखने में लगता है कि भगवान की मूर्ति गर्भ गृह के बीच में है, लेकिन वास्तव में, जब आप इसे बाहर से खड़े होकर देखेंगे, तो पाएंगे कि यह मंदिर के दायीं ओर स्थित है.

यहाँ भगवान पीते है शराब

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